गैजेट डेस्क, मानसी पुजारा, बेंगलुरू. बहस जारी है कि दोनों में से कौन-सा विकल्प बेहतर है और किसे अपनाया जाए? ऑडियो बुक्स को अपनाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और ये कुछ लोगों के लिए बहुत काम की साबित हो रही हैं। पेपर बुक पढ़ने का तजुर्बा ऑडियो बुक सुनने से काफी अलग होता है, फिर चाहे कंटेंट एक ही क्यों ना हो। दोनों के अपने फायदे और नुकसान हैं। जानिए…
– पढ़ने में हाल ही में दिलचस्पी हुई है और आप उन लोगों में से हैं जिन्हें किताब को छूकर व सूंघकर ही पढ़ने में आनंद आता है, तो ऑडियो बुक्स आपके लिए बोरिंग साबित हो सकती हैं। केवल पेपर बुक्स ही आपको संतुष्ट कर सकती हैं।
– जिन्हें किताबों के मार्जिन में नोट्स लिखने की आदत है, उनके लिए भी ऑडियो बुक्स ज्यादा काम की नहीं हैं। वरना उन्हें अपने विचार व्यक्त करने के लिए एक अलग नोटबुक की जरूरत पड़ेगी। ऑडियो बुक में किसी खास विचार को तलाशना मुश्किल हो सकता है जबकि पेपर बुक में पेन से निशान बनाया जा सकता है।
– पेपर बुक्स उनके लिए भी अच्छी हैं जिन्हें सुनी हुई बातें याद नहीं रहती हैं लेकिन विजुअल मेमोरी बढ़िया होती है। पेपर बुक्स के कुछ नुकसान भी हैं जो स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन से जुड़े हुए हैं। ये जगह बहुत लेती हैं। खासकर तब जब आपको पढ़ने का शौक है और घर में बहुत सारी किताबें हैं।
– ऑडियो बुक्स ने लोगों के पढ़ने का अंदाज़ बदल दिया है। इनके साथ कहानियां ज्यादा जीवंत लगने लगती हैं, ज्यादा विजुअल भी लगती हैं। ऐसा इसलिए कि कंटेंट पढ़ने वाले प्रोफेशनल एक्टर्स होते हैं जो लिखे हुए हर शब्द को हाव-भाव के साथ पढ़ते हैं। वे कहानी को पूरे उत्साह के साथ सुनाते हैं जिससे पढ़ने वाले की दिलचस्पी बनी रहती है।
– ऑडियो बुक्स के साथ आप मल्टीटास्किंग कर सकते हैं और अपना समय बचा सकते हैं। लोग अपने पसंदीदा लेखकों को सुनते हुए घर के काम कर सकते हैं, ऑफिस जाते हुए गाड़ी में सुन सकते हैं या एक्सरसाइज़ और कुकिंग करते हुए भी सुन सकते हैं।
– ऑडियो बुक्स का एक फायदा यह भी है कि आप अपनी पसंद के अनुसार कंटेंट को आगे या पीछे कर सकते हैं, सुनने की स्पीड बढ़ा सकते हैं। स्टूडेंट्स के लिए ये बहुत फायदेमंद साबित हो सकती हैं या उनके लिए जो कम समय में ज्यादा पढ़ना चाहते हैं। सबसे महत्वपूर्ण ये है कि ऑडियो बुक्स पर्यावरण के भी अनुकूल हैं।
– ऑडियो बुक्स ज्यादा सुविधाजनक भी हैं। पेपर बुुक्स को कैरी करना मुश्किल होता है और इन्हें शांत जगह तलाशने के बाद ही पढ़ सकते हैं। ठीक से समझने के लिए फोकस करना होता है। वहीं ऑडियो बुक्स को आप अपनी जेब में लेकर भी घूम सकते हैं। आईफोन या आईपॉड में ले सकते हैं। आप इन्हें जहां चाहें वहां लेकर जा सकते हैं। अपने ईयरफोन्स प्लग करके जहां छोड़ा था, वहीं से दोबारा पढ़ सकते हैं और कहानी का मज़ा ले सकते हैं।
ऐसे बनती है ऑडियो बुक
1. ऑडियो के अधिकार एक ही प्रकाशक को मिलते हैं। प्रकाशक के पास दो विकल्प होते हैं। या तो वो ऑडियो बुक खुद ही बनाते हैं या फिर किसी तीसरे को अधिकार देकर उनसे ये काम करवाते हैं। एक बार ये तय हो जाता है, तो कहानी सुनाने वालों की और प्रोडक्शन के लिए टेक्स्ट बनाने की तैयारी शुरू होती है। कई बार कहानी कहने वालों के ऑडिशन भी लिए जाते हैं, उसके बाद ही किसी को चुना जाता है। कई बार उन्हें लेखक खुद ही चुनते हैं और कभी प्रोड्यूसर अपने पोर्टफोलियो में से सर्वश्रेष्ठ आवाज़-अभिनेताओं के नाम प्रस्तावित कर देते हैं।
2. ये प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण होती है क्योंकि किताब को आवाज़ देने वाले ही किताब की हर भावना को सही तरीके से व्यक्त करने का जटिल काम करते हैं। किसी भी ऑडियो बुक की क्वालिटी इन्हीं के कौशल पर निर्भर करती है। लोगों का फोकस बनाए रखने के लिए कहानी सुनाने वाले को कहानी को जीवंत करना होता है।
3. आवाज़ देने वालों को रिकॉर्डिंग से पहले थोड़ी तैयारी भी करनी होती है। पहले वे किताब को खुद पढ़ते हैं और हर किरदार को समझते हैं- किरदार कहां से है, उसके बोलने का अंदाज क्या है, वो कैसे चलता है , कैसे सांस लेता है, वगैरह।
4. जब रिकॉर्डिंग शुरू होती है तब केवल तीन लोग मौजूद होते हैं- एक्टर, नरेटर और डाइरेक्टर। हालांकि कई बार नरेटर्स होम स्टूडियो में ही रिकॉर्डिंग करते हैं। डाइरेक्टर टेक्स्ट पर ध्यान देते हैं, वॉइस एक्टर को निर्देश देते हैं। इंजीनियर देखते हैं कि कोई तकनीकि खराबी न आए।
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