निकोल पर्लरोथ. खेल की दुनिया में रूस पिछले 5 साल से लगातार विवादों में घिरा है और ये विवाद जल्द खत्म होते नहीं दिख रहे हैं। कंप्यूटर क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों में से एक माइक्रोसॉफ्ट ने दावा किया है कि रूस ने डोपिंग से जुड़ी धोखाधड़ी के आरोपों से बचने के लिए दुनियाभर की 16 अलग-अलग एजेंसियों से कंप्यूटर और तमाम अन्य डेटा हैक करने की कोशिश की थी। इसके पीछे उद्देश्य था एजेंसियों के पास इकट्ठा डेटा में छेड़छाड़ कर अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को गलत साबित करना। जिन 16 एजेंसियों के कंप्यूटर हैक करने की कोशिश की गई, उनमें कुछ नेशनल और इंटरनेशनल स्पोर्ट्स एजेंसी और एंटी-डोपिंग एजेंसियां शामिल हैं।
माइक्रोसॉफ्ट का कहना है कि रूस ने सितंबर महीने में ही इस साइबर अटैक की कोशिश की थी। वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) सितंबर में रूस के खिलाफ लगे आरोपों की जांच कर रही थी और 16 सितंबर को इस मामले में पहली जांच रिपोर्ट आनी थी।
इसके कुछ दिन पहले ही रूस ने एजेंसियों के सिस्टम हैक कर डेटा को अपने हिसाब से तोड़ने-मरोड़ने की कोशिश की। इनमें से कई एजेंसियों के डेटा से छेड़छाड़ करने में उसे सफलता भी मिली, जबकि कुछ एजेंसियों के डेटा से छेड़छाड़ नहीं हो सकी।
दरअसल रूस पर डोपिंग से जुड़ी अनियमितताओं के कारण पहले भी सवाल उठते रहे हैं। 2016 ओलिंपिक के पहले भी रूस पर इन्हीं वजहों से प्रतिबंध तक की नौबत आ गई थी। 2018 विंटर गेम्स में भी रूस के एथलीट्स अपने देश के झंडे तले नहीं उतर सके थे।
अब 2020 में टोक्यो में होने वाले ओलिंपिक खेलों से पहले एक बार फिर रूस पर प्रतिबंध लगाए जाने की बात हो रही है। रूस ने पहले तो डोपिंग टेस्ट के लिए एथलीट्स के डेटा देने में आना-कानी की, इसके बाद सैंपल से छेड़छाड़ करने की कोशिश भी की।
रूस की ओलिंपिक भागीदारी पर वाडा का अंतिम फैसला आना अभी बाकी है। ऐसे में अब हैकिंग की खबर इस फैसले में रूस को बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है। इस बीच वाडा ने भरोसा दिलाया है कि उनका डेटा सुरक्षित है।
माइक्रोसॉफ्ट का कहना है कि रूस में फैंसी बियर नाम का एक हैकर्स ऑर्गनाइजेशन सक्रिय है, जिसे सरकार का भी समर्थन प्राप्त रहता है। अब स्पोर्ट्स और डोपिंग एजेंसियों के डेटा हैक करने की कोशिश के पीछे भी इसी ग्रुप का हाथ है। ये वही हैकर्स हैं, जिन पर 2016 में रूस की डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी के डेटा को हैक करने की कोशिश के आरोप हैं।