तिलक भारत में किसी भी शुभ कार्य से पूर्व माथे पर लगाया जानेवाला मंगल प्रतीक चिन्ह होता है , पर तिलक को भ्रुकुटी पर लगाने से आत्म शक्ति, एकाग्रता, सायंम, शांति, निर्णय लेने की क्षमता बढ़ जाती है | जिसे कई प्रकार के आकृति मे लगाया जाता है एवं इसे कई कई प्रकार के सुगंधित जड़ी बूटियों के लेप के रूप मे तयार किया जाता है |
तिलक को आधुनिक समय मे मुख्यतः चन्दन, केसर, हल्दी ,कुमकुम, लोरी, तुलसी के मूल की मिट्टी आदि के लेप से बनाया जाता है | शास्त्रानुसार व्यक्ति को शुभ कार्यों के प्रारम्भ से पहले दोनों भौहों के बीच “आज्ञाचक्र” अर्थात भ्रुकुटी पर तिलक को लगाना चाहिए | भ्रुकुटी को चेतना केंद्र भी कहते हैं।
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संस्कृति मे एक श्लोक मे तिलक लगाने का वर्णन मिलता है :
स्नाने दाने जपे होमो देवता पितृकर्म च|
तत्सर्वं निष्फलं यान्ति ललाटे तिलकं विना||
तिलक की मिट्टी और सामाग्री के बारे मे वर्णित किया गया है |
पर्वताग्रे नदीतीरे रामक्षेत्रे विशेषतः| सिन्धुतिरे च वल्मिके तुलसीमूलमाश्रीताः||
मृदएतास्तु संपाद्या वर्जयेदन्यमृत्तिका| द्वारवत्युद्भवाद्गोपी चंदनादुर्धपुण्ड्रकम्||
तिलक को वैज्ञानिक रूप से एक प्रयोग किया गया जिसमे तिलक लगाए हुये लोगों का ध्यान, एकाग्रता, निर्णय लेने की शक्ति, विश्वास और आत्म बल को बढ़ा हुआ पाया गया | जिन लोगों ने तिलक नही लगया था उन लोगो मे धीरज , सायंम, एकाग्रता, आत्म शक्ति कमजोर पायी गयी | वैज्ञानिक रूप से तिलक को आत्म शक्ति के पूरक (confidence) के रूप मे माना गया |
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तिलक कौन सी उंगली से लगाना चाहिए?
तिलक को अनामिका अंगुली का प्रयोग करके लगाना चाहिए। इसे रिंग फिंगर भी कहते हैं | तिलक के प्रकार के अनुसार अंगुलियों का प्रयोग किया जाता है | कुछ तिलक मे तीन अंगुलियों का प्रयोग किया जाता है
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तिलक कितने प्रकार के होते हैं ?
हिन्दू धर्म के तिलक के प्रतीक को कई प्रकार से लगाया जाता है ये 80 से भी ज्यादा प्रकार के होते हैं | वैष्णव संप्रदाय के लोग और साधू संत 64 प्रकार के तिलक लगते हैं | हिंदू धर्म में जितने भी संतों के मत हैं, पंथ है, संप्रदाय हैं, उन सबके भी अलग-अलग तिलक पाये जाते हैं।
वैष्णव तिलक
- शाक्त तिलक – सिंधुर का तिलक लगाया जाता है
- ललश्री तिलक – चन्दन का तिलक लगा कर बीच मे कुमकुम रख दी जाती है
- विष्णुस्वामी तिलक – दो चौड़ी रखा वाला तिलक
- रमानन्द तिलक – विष्णु स्वामी तिलक के बीच मे एक कुमकुम की खड़ी रेखा तिलक
- श्यामश्री तिलक – गोपीचन्द तिलक के बीच मे काली मोटी रेखा
कुछ वैज्ञानिक शोध !
तिलक जो को माथे के बीच में लगाया जाता है उसी जगह से एक मस्तिष्क की नस गुजरती है जो मस्तिष्क में रक्त संचार का एक वाहक है , वैसे तो बहुत सी नसे मस्तिष्क को रक्त पहुँचती हैं फिर भी ये उनमे से एक है ,
चीन में एक परम्परागत उपचार किया जाता है जिसमे माथे की बीचोबीच एक नस को पंचर किया जाता है जहाँ से एक रक्त की धार निकलती है जिसको भी सर में दर्द, आधे माथे में दर्द रहता है या खून का थक्का जमता है वो लोग ये उपचार कराते हैं | इस उपचार के बाद उन्हें मस्तिष्क ठंडा रखने के लिए लेप लगा के रखने का उपदेश दिया जाता है | इसके बाद सर दर्द, जमे खून , आधा सर दर्द, ठीक हो जाता है पर ये बहुत सावधानी और चिकित्साक के देख रेख में किया जाता है इसे घर पर न करें |
इसी शोध में ये सामने आया है की इसी ललाट के नस को ठंडा रखने के लिए तिलक का प्रयोग किया जा सकता है , एवं एक शोध में ये प्राप्त हुआ है की है कलर की अपनी एक तरंगदैर्घ्य होती है एवं जिसमे लाल, पिले और काले रंग को बहुत ज्यादा प्रकाश से क्रिया करते देखा गया है |
इसलिए ये रंग प्रकाश को अपनी तरफ आने के बाद उसे मस्तिष्क के ललाट के नस में बह रहे खून में भेज देती हैं जिससे प्रकाश के कण अल्फ़ा एवं अन्य कण खून में शामिल होने लगते हैं जिससे मस्तिष्क को लाभ मिलता है | जिस प्रकार अभी स्मार्ट वाच प्रकाश भेज कर खून में ऑक्सीजन , हार्ट रेट , ब्लड प्रेसर नाप लेते हैं उसी प्रकार ये तिलक भी वैज्ञानिक रूप से लाभकारी होते हैं जो मस्तिक के खून में प्रकश को फ़िल्टर कर के भेजते हैं |
इसी प्रकार काले रंग के पास प्रकाश खींचने की क्षमता होती है इसलिए आंख में लगाने से आंख के पास अधिक प्रकाश पहुंचने लगता है जिससे आंख पर लोड काम पड़ता है और आंख तक अधिक प्रकाश पहुँचता है |
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