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त्वचा के भीतर जासूसी की तैयारी! Chip inside human body

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कोरोना वैक्सीन.. कुछ न कुछ तो गडबड जरुर है।

दुनिया भर में अब ‘अंडर द स्किन सर्विलेंस’ यानी त्वचा के अंदर घुस कर जासूसी की तैयारी हो रही है। कोरोना वायरस के संकट ने सरकारों को यह मौका दिया है। कोरोना की आपदा को सरकारें अवसर में बदल रही हैं। मानव सभ्यता के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि सरकारें अपने हर नागरिक पर हर समय नजर रखने के उपाय कर रही हैं। यह काम तकनीक के जरिए हो रहा है और कोरोना का संक्रमण रोकने के बहाने से हो रहा है। कोरोना के खत्म होने तक किसी न किसी तरीके से इसे हर देश में लागू कर दिया जाएगा। भारत में नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन के जरिए इसे लागू किया जाएगा।

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समकालीन दुनिया के सबसे बड़े विचारकों में से एक युआल नोवा हरारी ने इस साल मार्च में लंदन के अखबार ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ में लिखे एक लेख कहा था कि ‘अभी जब आप अपने स्मार्ट फोन से किसी लिंक को क्लिक करते हैं तो सरकार सिर्फ यह जानना चाहती है कि आप किस चीज पर क्लिक कर रहे हैं पर वायरस की वजह से सरकारों की दिलचस्पी का फोकस बदल गया है, अब सरकारें आपकी उंगलियों का तापमान और त्वचा के नीचे आपका रक्तचाप जानना चाहती हैं’। यह लोगों की निजता भंग करने वाली जासूसी का नेक्स्ट लेवल है। 

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भारत का नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन त्वचा के नीचे की इसी जासूसी का रास्ता साफ करेगा। इस किस्म की जासूसी के लिए जरूरी कुछ डाटा लोग खुद ही उपलब्ध कराएंगे। बाकी डाटा इस प्रोजेक्ट से जुड़ने वाले ‘हितधारक’ अपने आप जुटा लेंगे। भारत में तो यह अभी शुरू होने वाला है पर दुनिया के कई देशों ने इसकी शुरुआत कर दी है। नई सदी की शुरुआत से पहले छोटे से देश आइसलैंड में एक कंपनी ‘डिकोड’ ने वहां के लोगों का जेनेटिक डाटा जुटाना शुरू किया था और लोगों की मेडिकल रिपोर्ट को भी डिजिटाइज्ड करना शुरू किया था, जिसकी अब भारत में बात हो रही है।

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वहां भी यहीं कहा गया था कि कोई भी डाटा लोगों की सहमति के बगैर एक्सेस नहीं किया जाएगा, जैसा कि भारत में नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन की ब्लूप्रिंट में कहा गया है। पर वहां लोगों का डाटा सार्वजनिक होने लगा। ‘इंफॉर्मड कंसेंट’ के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ, जिसके बाद वहां की सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला की याचिका पर 2003 में इस पर आंशिक रूप से रोक लगा दी। वहां कई तरह की समस्या आई थी, जिसमें से एक समस्या यह थी कि लोगों के हेल्थ रिकार्ड और आनुवंशिक बीमारियों की जानकारी से यह भी पता चलने लगा कि किसी आदमी को आगे कौन सी बीमारी हो सकती है। कंपनियां लोगों को नौकरी पर रखने से पहले यह डाटा देखने लगी थीं और उन्होंने संभावित बीमारी के बहाने लोगों को नौकरी देने से मना करना शुरू किया था या नौकरियों से निकाल दिया था।

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सोचें, जब आइसलैंड जैसे छोटे से और साढ़े तीन लाख लोगों की आबादी वाले देश में इस किस्म की अफरातफरी हो गई तो 138 करोड़ लोगों वाले भारत देश में क्या हो सकता है? भारत में तो वैसे ही बीमारियों को लेकर लोगों के मन में छुआछूत का भाव रहता है। कई बीमारियां टैबू मानी हैं, जिनके बारे में लोग बात नहीं करना चाहते हैं। अनेक बीमारियों की जांच को लेकर सरकार खुद ही लोगों को प्रेरित करते हुए कहती है कि उनकी जांच रिपोर्ट गोपनीय रखी जाएगी। एचआईवी, एड्स, यौन संक्रमण, टीबी, कुष्ट जैसी अनेक बीमारियां हैं, जिनके बारे में जानकारी सार्वजनिक होना लोग बरदाश्त नहीं कर पाएंगे। भारत जैसे देश में जहां साइबर सुरक्षा और डाटा सुरक्षा को लेकर न कोई ठोस नियम है और न ठोस व्यवस्था है, वहां लोगों की बीमारियों, इलाज, जांच, दवाओं आदि की जानकारी जुटा कर डिजिटल फॉर्मेट में एक जगह रखना अंततः एक खतरनाक खेल साबित हो सकता है। यह लोगों की निजता को और उनके निजी जीवन को बहुत बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है।

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स्मार्ट फोन, स्मार्ट वॉच, स्मार्ट टीवी आदि के जरिए पहले ही तकनीक की घुसपैठ लोगों के घरों और उनके जीवन में हो चुकी है। इनके जरिए भी लोगों के हाव-भाव, उनकी जीवन शैली, उनकी आदतों, सेहत आदि के बारे में बहुत सी जानकारी दुनिया के किसी कोने में रखे सर्वर में इकट्ठा हो रही है, जिसे बिग डाटा अलगोरिदम के जरिए मशीनें एनालाइज कर रही हैं और उस आधार पर संबंधित व्यक्ति की पूरी सोच और उसके पूरे जीवन को मैनिपुलेट करने का काम हो रहा है। उसकी पसंद-नापसंद को प्रभावित किया जा रहा है और उसे किसी खास काम के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया जा रहा है। कैंब्रिज एनालिटिका ने फेसबुक से डाटा हासिल करके अमेरिकी चुनाव में यहीं काम किया था।

आने वाले दिनों में 5जी तकनीक, बिग डाटा अलगोरिदम, मशीन लर्निंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, नैनो टेक्नोलॉजी आदि के जरिए यह काम और आसान हो जाएगा। भारत का नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन हो या बिल गेट्स का आईडी-2020 मिशन हो, इनका मकसद लोगों का ज्यादा से ज्यादा डाटा डिजिटल तौर पर हासिल करना है। जब भारत में डिजिटल हेल्थ मिशन के तहत लोगों का हेल्थ कार्ड बन जाएगा, उनको यूनिक हेल्थ आईडी मिल जाएगी उसके बाद यह काम और आसान हो जाएगा। उस यूनिक नंबर के साथ हर व्यक्ति की सेहत का पूरा डाटा जुड़ा होगा। इसे आधार के साथ लिंक करने की भी योजना है, जिसका मतलब यह होगा कि एक व्यक्ति के यूनिक नंबर का पता लगने के बाद उसके पूरे परिवार का डाटा हासिल किया जा सकता है, जिसका कई तरह से दुरूपयोग संभव है।

सो, यह तय मानें कि नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन से देश की बहुसंख्यक आबादी को हासिल कुछ नहीं होना है। न उनके लिए स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा सुधारा जा रहा है, न डॉक्टर और नर्सों की उपलब्धता बढ़ाई जा रही है, न सस्ती जांच होने वाली है और न सस्ती दवाएं मुहैया कराने की योजना है। इसका मकसद एक अतिरिक्त कार्ड और यूनिक नंबर देने के बहाने उनकी सेहत, बीमारी, जांच, इलाज, दवा आदि की पूरी जानकारी हासिल करना है, जिसका फायदा बड़ी दवा कंपनियों, अस्पतालों की बड़ी चेन, थोड़े से स्थापित लैब्स और टेलीमेडिसीन व ऑनलाइन दवा बेचने वाली कंपनियों को होना है। यह देश को अनिवार्य वैक्सीनेशन की ओर ले जाने वाला भी है, जिसका फायदा वैक्सीन के खेल से जुड़े देश और दुनिया की बड़ी कंपनियों को होना है। अगर दुनिया में चल रही साजिश थ्योरी पर भरोसा करें तो इसके जरिए हर इंसानी शरीर में एक माइक्रोचिप फिट करने की माइक्रोसॉफ्ट की योजना सिरे चढ़ सकती है। पर अगर ऐसा नहीं भी होता है तब भी इससे लोगों की निजता, नौकरी, रोजगार, सामाजिक प्रतिष्ठा आदि बुरी तरह से प्रभावित होंगे।

Credit By :- https://jagjahirnews.blogspot.com/

1 thought on “त्वचा के भीतर जासूसी की तैयारी! Chip inside human body

  1. Hi there, its nice piece of writing concerning media print, we all be familiar with media is a enormous source of data.

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