गैजट डेस्क.रोमेश रत्नेसर/रेडमंड. बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों की बढ़ती ताकत और बिजनेस के तरीकों पर दुनियाभर में अविश्वास बढ़ा है। सोशल मीडिया की भूमिका पर हर जगह बहस चल रही है। इस हलचल के बीच सरकारों और टेक इंडस्ट्री ने हिंसक, आतंकवादी प्रचार से निपटने की पहल की है। इसकी अगुआई माइक्रोसॉफ्ट के प्रेसीडेंट ब्रेड स्मिथ कर रहे हैं। हालांकि, उनके प्रयासों पर सवाल भी उठने लगे हैं। आलोचकों का कहना है, टेक इंडस्ट्री समाज की बजाय अपने हितों का ज्यादा ध्यान रखती है। सरकारों के अरबों रुपए खर्च करने के बावजूद साइबर स्पेस में जहरीला कंटेंट बढ़ ही रहा है। लोकतांत्रिक चुनावों, प्राइवेसी और बाजारों पर हमले कम नहीं हुए हैं।
स्मिथ ने इंडस्ट्री के अनाधिकृत ग्लोबल एम्बेसडर की भूमिका हाथ में ली है। वे पिछले वर्ष 22 से अधिक देशों की यात्रा कर चुके हैं। डिजिटल टेक्नोलॉजी के गलत प्रभावों को रोकने के लिए सरकारों और टेक कंपनियों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं। इन प्रयासों के कुछ अच्छे नतीजे निकले हैं। नवंबर में पेरिस, फ्रांस में साइबर स्पेस में विश्वास बढ़ाने के लिए 67 देशों और 358 प्राइवेट कंपनियों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। मार्च में क्राइस्टचर्च, न्यूजीलैंड में दो मस्जिदों पर आतंकवादी हमले में 51 लोगों की मौत के बाद हलचल तेज हुई। स्मिथ ने न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न की मदद से ऑनलाइन हिंसक, उग्रवादी कंटेंट हटाने का अभियान शुरू किया है।
समझौते के तहत स्मिथ को फेसबुक, टि्वटर सहित अन्य सोशल मीडिया कंपनियों को आतंकवादी कंटेंट जल्द हटाने और उससे संबंधित जानकारी सार्वजनिक करने के लिए मनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। अमेरिकी सरकार और टेक इंडस्ट्री में स्मिथ का अच्छा प्रभाव है। 60 वर्षीय स्मिथ माइक्रोसॉफ्ट के सबसे लंबे समय तक काम करने वाले अधिकारी हैं। वे वर्तमान नेतृत्व और उसके सह संस्थापक बिल गेट्स के बीच पुल का काम करते हैं। सबसे बड़े विधि अधिकारी के रूप में उनके कार्यकाल में सॉफ्टवेयर दिग्गज कंपनी की एंटी ट्रस्ट मामले में सरकार से बीस वर्ष तक लड़ाई चली। इस वर्ष क्लाउड कंप्यूटिंग ताकत के बूते एपल और अमेजन को पीछे छोड़कर माइक्रोसॉफ्ट विश्व की सबसे कीमती कंपनी बन गई है। स्मिथ को 2015 में प्रेसिडेंट बनाने वाले सीईओ सत्या नडेला कहते हैं, वे ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने कंपनी, टेक इंडस्ट्री और आसपास की दुनिया में बदलाव के बीच उतार-चढ़ाव देखे हैं।
टेक कंपनियों की कोशिशों के बीच दो सवाल उठते हैं। पहला-क्या स्मिथ की पहल से इंडस्ट्री द्वारा कंज्यूमर प्राइवेसी, सामाजिक स्थिरता और लोकतंत्र को पहुंचाए गए नुकसान की भरपाई हो सकती है। स्मिथ डिजिटल टेक्नोलॉजी कंपनियों पर सीमित नियमन लागू करने के पक्ष में हैं। उनका कहना है, टेक कंपनियों को अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करना चाहिए। आलोचक कहते हैं, यह तो लोमड़ी को मुर्गियों के बाड़े की हिफाजत सौंपने जैसा है। थिंक टैंक ओपन मार्केट्स इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर लिन का कहना है, निजी कंपनियों ने टेक्नोलॉजी को लोकतंत्र के खिलाफ हथियार बना लिया है। ये तो पैसा बनाने वाले उपक्रम हैं। दूसरा प्रश्न है-क्या स्मिथ के प्रयास जनता की तुलना में माइक्रोसॉफ्ट के हितों को ज्यादा आगे बढ़ाते हैं। फेसबुक, अमेजन, गूगल की कुछ नीतियां माइक्रोसॉफ्ट के समान हैं।
कुछ लोग स्मिथ के टेक कंपनियों को नियमों के दायरे में लाने की दलील को माइक्रोसॉफ्ट के प्रतिद्वंद्वियों की तरक्की धीमी करने की रणनीति मानते हैं। हार्वर्ड कैनेडी स्कूल में लोकतंत्र प्रोजेक्ट के प्रमुख दीपायन घोष का कहना है, नैतिक और आदर्शवादी रुख अपनाकर माइक्रोसॉफ्ट ने कंज्यूमर के लिए अपनी प्रतिबद्धता को सामने रखकर प्रतिस्पर्धा को किनारे कर दिया है। आलोचक यह भी कहते हैं, टेक इंडस्ट्री का अपनी समस्याओं पर सरकार के साथ मिलकर काम करना उसके साथ सहयोग करने जैसा है। ध्यान रहे, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार ने इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है।
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