गैजेट डेस्क. आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के जरिए अब 2डी इमेज, 3डी इमेज में बदली जा सकेंगी। वैज्ञानिकों ने शरीर के भीतर की गतिविधियों और रोगों की सटीक पहचान के लिए इस तकनीक को महत्वपूर्ण बताया है। लॉस एंजेलिस स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं की टीम ने डीप लर्निंग का उपयोग करते हुए एक ऐसी टेक्नोलॉजी तैयार की है, जो फ्लोरेंस माइक्रोस्कोपी की क्षमताओं को और विस्तार दे सकती है।
इसके जरिए वैज्ञानिकों उन कोशिकाओं को ठीक करने में मदद मिलेगी जो विशेष प्रकाश डाले जाने पर चमकती हैं। दरअसल, शरीर के भीतर कोशिकाओं में होने वाले बदलावों के कारण गंभीर बीमारियां पनपने का खतरा रहता है क्योंकि कई बार रासायनिक प्रक्रियाओं के चलते कोशिकाएं अव्यवस्थित तरीके से बढ़ने लगती हैं। इनके इलाज के लिए माइक्रोस्कोपी की जरूरत पड़ती है। इस प्रक्रिया में शरीर के भीतर माइक्रोस्कोप डालकर रोग की पहचान की जाती है। इसमें लगे कैमरे के जरिए डॉक्टर अंदर की सारी गतिविधियों का आकलन करते हैं और बीमारी की परख करने के बाद उसका इलाज करते हैं। लेकिन कई बार कोशिकाओं में अनियंत्रित वृद्धि और बदलाव माइक्रोस्कोप में लगे 2 डी कैमरे पकड़ में नहीं आते क्योंकि ये कैमरे अपने सामने की सतह की इमेज का ही परीक्षण कर पाते हैं। वरिष्ठ वैज्ञानिक आयडोगन ओजकन के मुताबिक यह बहुत ही शक्तिशाली तरीका है। यह प्रकाश की मौजूदगी में हानिकारक तत्वों को आसानी से पहचान सकती है।
डीप जेड फ्रेमवर्क इमेज की कमियों को दुरुस्त कर सकता है
शोधकर्ताओं का कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर माइक्रोस्कोप में लगे कैमरे को 3डी बनाया जा सकता है, जिससे माइक्रोस्कोप के शरीर के भीतर पहुंचते ही यह 3डी इमेज बनाना शुरू कर देता है। उन्होंने कहा कि इसका फायदा यह होगा कि आंतों की हर एंगल से जांच की जा सकेगी। इससे इस तरह की संभावनाएं कम हो जाएंगी कि बीमारी या कोशिकाओं में होने वाले अनियंत्रित बदलावों को पहचाना ही ना जा सके। नेचर मैथड्स के मुताबिक ‘डीप-जेड’ फ्रेमवर्क में ऐसी क्षमताएं हैं जो इमेजों की कमियों को दुरुस्त कर सकता है। साथ ही माइक्रोस्कोप से 2डी इमेज कर उन्हें 3 डी में बदल सकता है। उन्होंने कहा कि इस टेक्नोलॉजी में माइक्रोस्कोपी के जरिए इलाज को और प्रभावी बनाया जा सकता है।