एआई, मशीन लर्निंग और आईओटी जैसी नई तकनीक से दिव्यांगों को तीन गुना ज्यादा रोजगार मिलेगा

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बेंगलुरु. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), मशीन लर्निंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) जैसी तकनीकों से दिव्यांगों के लिए रोजगार के काफी मौके हैं। नई तकनीकों से 2023 तक नौकरी वाले दिव्यांगों की संख्या में तीन गुना का इजाफा हो जाएगा। यह अनुमान रिसर्च फर्म गार्टनर ने लगाया है।

रिसर्च फर्म का मानना है कि एआई जैसी तकनीक से काम करने की बाधाएं या फिजिकल वर्किंग कम होगी और सिर्फ कमांड बेस्ड काम होगा। ऐसे में दिगयांग अपने दिमाग का इस्तेमाल कर रोजगार पाने में ज्यादा सक्षम होंगे। गार्टनर फेलो और वाइस प्रेसीडेंट डेरिल प्लमर ने बताया कि एआई, आॅगमेंटेड रियलिटी व वर्चुअल रियलिटी और दूसरी तकनीकों ने दिव्यांगों के लिए काम करने के तरीकों को आसान किया है। प्लमर ने बताया कि चुनिंदा रेस्तरां हैं जिनमें पायलट प्रोजेक्ट के तहत एआई रोबोटिक्स तकनीक से काम होता है।

इसमें लकवाग्रस्त वेटर रिमोट से रोबोट को नियंत्रित करके आर्डर ले लेता है। फर्म की रिपोर्ट के मुताबिक जो संगठन या कंपनियां दिव्यांगों को मौके दे रही हैं फर्म ने पाया कि दिव्यांगों को नौकरी में रखने पर संबंधित कंपनी का रिटेंशन रेट 89 प्रतिशत तक सीमित रहा। यही नहीं, कर्मचारियों की उत्पादकता में 72% की वृद्धि हुई। इससे मुनाफे में भी 29% का उछाल आया। चेहरे की पहचान, ट्रैकिंग और बिग डेटा आदि की वजह से व्यक्तिगत व्यवहार की आदतें भी बदलेंगी। जैसे ट्रेन की टिकट खरीदने के लिए पहले चेहरे की पहचान जरूरी होगी। फिजिकल रूप से इंटरनेट ऑफ थिंग्स के जरिए अब व्यक्ति के इंटरनेट बिहेवियर की भी जानकारी हासिल हो सकेगी। इसे इंटरनेट ऑफ बिहेवियर के नाम के नाम से जाना जाएगा।

इमोशन के एआई से जुड़ने से बायिंग कैपेसिटी होगी प्रभावित

गार्टनर के अनुसार साल 2020 और इसके बाद एआई के साथ इमोशन भी जुड़ जाएगा। यानी आर्टिफिशियल इमोशनल इंटेलिजेंस आने के बाद कंपनियां ग्राहकों के खरीद पैटर्न के साथ उनके इमोशन का भी पता लगा सकेंगी। इससे वे उनकी बायिंग कैपेसिटी को प्रभावित करने की स्थिति में होंगी। बाजार में उपयोग की जा रही शीर्ष तीन तकनीकों में एआई व मशीन लर्निंग का हिस्सा 28% होगा। यह तकनीक मार्केट के 87% हिस्से को प्रभावित करेंगी। यानी यह तकनीक मार्केट इम्पैक्ट को कुछ स्तर पर व्यक्तिगत रूप से असर डालेंगी।

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Artificial intelligence and machine learning in next-generation systems
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