मीडिया घाटे का कारोबार है। मीडिया का घाटा पूरा करने या इन्हें भुगतान करने वाले समूहों के आधार पर भारत में मीडिया के 2 वर्ग है :
- चूंकि दूरदर्शन के कर्मचारियों को वेतन नागरिको द्वारा वसूल किये गए टेक्स से चुकाया जाता है, अत: सरकार द्वारा नियंत्रित मीडिया सिटिजन पेड मीडिया है।
- प्राइवेट मीडिया का घाटा निजी कम्पनियों के मालिक पूरा करते है, और वे ही सूचनाएं देने के लिए मीडियाकर्मीयों को भुगतान करते है।
लोकतंत्र आने के बाद से मीडिया समूह दुसरे नंबर की सबसे ताकतवर कम्पनियां बन गयी है। पहला नंबर हथियार बनाने वाली कम्पनियों का है। पिछले 200 वर्षो से वैश्विक राजनीती पर हथियार निर्माताओ का कब्जा है, और दुनिया में सबसे बेहतर हथियार बनाने वाली कम्पनियां अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच धनिको के पास है।
जो भी देश अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच धनिकों को टक्कर देने वाले हथियार नहीं बना पा रहा है, उन देशो के मीडिया को अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच धनिक नियंत्रित करते है। भारत भी हथियार निर्माण में काफी पिछड़ा हुआ है, अत: भारत के मीडिया को भी अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच धनिक नियंत्रित करते है।
इन कम्पनियों का मुख्य एजेंडा वैश्विक भारत पर आर्थिक-सामरिक-धार्मिक नियंत्रण बनाना है। पेड मीडिया के माध्यम से वे भारत की मुख्यधारा की सभी राजनैतिक पार्टियों एवं नेताओं को नियंत्रित करते है, ताकि इनका इस्तेमाल अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में किया जा सके।
[ टिपण्णी : यह जवाब मेरे अनुभव के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष एवं अनुमान पर आधारित है। इस विषय में अन्य व्यक्तियों की राय एवं निष्कर्ष भिन्न हो सकते है। इस संक्षिप्त जवाब में 3 खंड है। पहले खंड में मैंने उन कम्पनियों के बारे में कुछ विवरण दिए है जिनका वैश्विक एवं भारतीय मीडिया में सबसे प्रभावी दखल है। खंड (2) में पेड मीडिया के प्रायोजको के वैश्विक एजेंडे को भारत के सन्दर्भ में बताया है। खंड (3) में उन कदमों का विवरण है, जिन्हें उठाकर आप उनके एजेंडे को ज्यादा अच्छे से समझ सकते है। मूल जवाब दुसरे खंड में है, अत: आप सीधे (2) को पढ़ सकते है। ]
.
खंड 1 ; पेड मीडिया को नियंत्रित करने वाली शक्तियां कौन है ?
.
राजतन्त्र में गेजेट छापने की शक्ति राजा के पास थी। राजा के पास सेना होती थी, और इसीलिए राजा ताकतवर था। 12 वीं सदी में युरोप में जूरी सिस्टम आया और ब्रिटेन-फ़्रांस ने तेजी से तकनिकी विकास करना शुरू किया। चूंकि निर्णायक हथियारो पर नियंत्रण से वास्तविक ताकत आती है, अत: जब भी किसी राज्य में तकनिकी विकास होता है तो अंततोगत्वा यह विकास हथियार निर्माण की दिशा में मुड़ जाता है।
17 वीं सदी में ब्रिटेन में निजी कम्पनियां बड़े पैमाने पर हथियार बनाने लगी थी, और 18 वीं सदी तक आते आते उन्होंने ऐसे निर्णायक हथियार बना लिए थे कि जिस सेना के पास ये हथियार होते थे वह सेना जीतना शुरू कर देती थी।
उदाहरण के लिए 1805 से 1815 के बीच सिर्फ बर्मिघम के कारखानों ने ही लगभग 40,00,000 बन्दूको का उत्पादन किया था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी इन्ही बन्दूको की सहायता से विभिन्न राजाओ की सेनाओं को हराकर अपने उपनिवेश स्थापित कर रही थी। बन्दूको निर्माण की दूसरी कॉटेज इंडस्ट्री लन्दन में थी। लन्दन एवं बर्मिंघम में बंदूक बनाने के इन कारखानों के मालिको ने ही पूरी दुनिया में ईस्ट इण्डिया कम्पनी एवं ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार को सुनिश्चित किया।
उस समय बंदूक निर्णायक हथियार थी, और इसके उत्पादन पर नियंत्रण रखने वालो की ताकत को आप इस तरह समझ सकते है कि, यदि 1 लाख बन्दूको एवं कारतूस की पेटियों से भरा जहाज सिराजुद्दौला को सप्लाई कर दिया जाता तो क्लाइव लॉयड न तो प्लासी का युद्ध जीतता था और न ब्रिटिश भारत में घुस पाते थे।
सिराजुद्दौला के पास यह अस्लहा आ जाता तो वह पूरे भारत को भी टेक ओवर कर लेता। लेकिन पूरे भारत का बादशाह बनने के बाद भी क्या सिराजुद्दौला बर्मिंघम के फैक्ट्री मालिक से टकराव ले सकता था ? नहीं !! क्योंकि वे सिराजुद्दौला के प्रतिद्वंदियों को 4 जहाज भरकर बंदूक भेज देते है, और सिराजुद्दौला के कारतूसो की सप्लाई रोक देते !! और इस तरह नवाब फिर से पिट जाता !! क्योंकि असली ताकत तब आती है जब आप अपने हथियार खुद बनाते हो।
मतलब, 200 साल पहले ही राजा वगेरह नाम के राजा रह गए थे, और असली ताकत हथियार निर्माताओं के पास आ चुकी थी। पेड इतिहासकार इन तथ्यों को दर्ज नहीं करते, क्योंकि उन्हें यह जानकारी छिपाने के लिए पेमेंट की जाती है।
बहरहाल, सिराजुद्दौला और भारत के अन्य राजाओं को हथियार बनाने वाली कंपनियों ने हथियार नहीं दिए, और वे हारते चले गए !! शिवाजी के पास पुर्तगाली तोपे थी, और यह एक बड़ी वजह थी कि वे मुकाबला कर पा रहे थे। बाजीराव को फ्रेंच तोपे सप्लाई कर रहे थे, और अहमद शाह अब्दाली के पास रशियन तोपखाना था।
1962 में चीन ने जब भारत पर हमला किया तो जवाहर लाल ने अमेरिका-रूस को हथियार भेजने के लिए चिट्ठियां लिखी थी। और जब चीन को लगा कि भारत को हथियारों की सप्लाई आ सकती है, तो चीन ने बढ़ना रोक दिया।
1965 में भारत पाकिस्तान में अन्दर तक चला गया था, लेकिन अमेरिका यानी हथियार बनाने वाली कपनियों के हस्तक्षेप के कारण हमें रुकना पड़ा। 1971 में फिर से यही हुआ। अमेरिका ने अपना नौ सेना बेड़ा पाकिस्तान की मदद के लिए रवाना कर दिया, और हमें फिर पीछे हटना पड़ा !! रूस के बीच में आने की वजह से हम बच गए वर्ना अमेरिकी धनिक भारत को 1971 में ही टेक ओवर कर लेते थे। और रूस अमेरिका को इसीलिए रोक पाया क्योंकि उस समय अमेरिका के साथ साथ रूस के पास भी निर्णायक हथियार थे।
आप पिछले 200 सालो में हुए दुनिया के सभी युद्धों का अध्ययन करके देख सकते हो। जिस देश को निर्णायक हथियार बनाने वाली कम्पनियों का सहयोग मिला हुआ है, वे देश युद्ध जीत जाते है, वर्ना हार जाते है !! 16 वीं सदी से पहले तक बड़ी सेना का महत्त्व होता था, लेकिन बाद में जैसे जैसे हथियारों की तकनीक उन्नत होती गयी वैसे वैसे युद्ध में निर्णायक भूमिका हथियारों की हो गयी। द्वितीय विश्व युद्ध 6 साल तक चलता रहा लेकिन अमेरिका के फाइटर प्लेन ने 2 बम गिराकर युद्ध का फैसला कर दिया था।
तब से आज हथियारों की तकनीक इतनी आगे जा चुकी है कि निर्णायक हथियारों से लैस 5 हजार का दस्ता 50 लाख की सेना को ख़त्म कर सकता है। वो भी परमाणु बमों का इस्तेमाल किये बिना।
मेरा बिंदु यह है कि पिछले 200 वर्षो से इस धरती पर सबसे ताकतवर समूह हथियार कम्पनियां है, और अमेरिकी कम्पनियों के मालिक सबसे बेहतर एवं सबसे मारक हथियार बना रहे है। और इस वजह से अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक वास्तविक अर्थो में वैश्विक राजनीती को प्रभावित एवं नियंत्रित करते है।
हथियार कम्पनियों के मालिको को सस्ते में माल बनाने के लिए मुफ्त का कच्चा माल यानी खनिज चाहिए। तो वे हथियारों का इस्तेमाल करके राजा को नियंत्रित (उपनिवेश की स्थापना) करते थे, और फिर खनिज लूटते थे। डेमोक्रेसी आने के बाद राजा की जगह पीएम ने ले ली, अत: उन्होंने लूट चलाने के लिए पीएम को कंट्रोल करना शुरू किया।
पीएम को कंट्रोल करने के 2 तरीके है
- या तो आपको पीएम को युद्ध में हराने की क्षमता जुटानी होगी,
- या फिर चुनाव में।
युद्ध में खून खराबा होता है, और लागत भी काफी ज्यादा आती है। अत: हथियार कम्पनियों के मालिको ने मतदाताओं को चाबी देने के लिए पेड मीडिया पर कंट्रोल लेना शुरू किया। पेड मीडिया द्वारा वे मतदाता को नियंत्रित करते है, और मतदाता के माध्यम से पीएम एवं राज नेताओं को। यदि किसी देश का पीएम मीडिया पर अपना कंट्रोल लेने की कोशिश करेगा तो उसे युद्ध में जाना पड़ेगा।
निर्णायक हथियारों के अलावा ये कम्पनियां और भी ऐसी ढेर सारी तकनिकी वस्तुएं बनाती है जो दुनिया के ज्यादातर देशो को बनानी नहीं आती। और इन वस्तुओ के बिना न तो देश चलाया जा सकता है, और न ही बचाया जा सकता है।
इसमें मुख्य रूप से हथियार, इंधन, दवाइयाँ, चिकित्सीय उपकरण एवं माइनिंग मशीनरी शामिल है। किन्तु निर्णायक बढ़त फिर भी इन्हें हथियारों से ही मिलती है। क्योंकि किसी भी प्रकार के टकराव का अंतिम पड़ाव हमेशा युद्ध ही होता है। निचे मैंने कुछ ताकतवर कम्पनियों के बारे में सांकेतिक जानकारी दी है। अन्य विवरण के लिए कृपया गूगल करें।
और ऐसी 15 से 20 कम्पनियां है जो अपना समूह (लॉबी) बनाकर काम करती है। इन कंपनियों के कुल एसेट्स को आप जोड़ ले तो योगफल भारत के कुल विदेशी मुद्रा कोष से कहीं ज्यादा निकल जाएगा, और जहाँ तक ताकत की बात है इनमे से प्रत्येक कम्पनी की ताकत पूरे भारत देश से ज्यादा है। मतलब यदि ऊपर दी गयी किसी भी कम्पनी या इस कम्पनी समूह से भारत का युद्ध हो जाता है तो ये कम्पनियां भारत को उधेड़ कर रख देगी !! क्योंकि ये कम्पनियां ऐसी चीजे बनाती है, जो दुनिया के ज्यादातर देश नहीं बना पाते !!
लॉकहिड मार्टिन पर गूगल करें कि ये कम्पनी किस तरह के सामान बनाती है ; Lockheed Martin – Wikipedia
.
C-130 Hercules
.
F-16 Fighting Falcon
.
F-22 Raptor
.
Submarine launch of a Lockheed Trident missile
.
Drone ; Stalker XE
.
Dual Mode Laser Guided Bomb
.
How laser guided bomb works
.
AH-64 Apache (boeing)
.
यदि ये कम्पनियां भारत पर हमला करने के लिए अपने उन्नत हथियार बांग्लादेश या पाकिस्तान को डिस्काउंट / मुफ्त में देना शुरू करें (जैसा कि उन्होंने कारगिल में किया था) और हमारी सप्लाई लाइन काट दे तो हमारे पास क्या विकल्प है !! सिर्फ रूस ही ऐसे हथियार बनाता है जो इनके हथियारों का मुकाबला कर सके। लेकिन 1971 की बात और थी। आज रूस इन कम्पनियों के खिलाफ जाकर भारत को मदद देने का जोखिम नहीं उठा सकता। कारगिल युद्ध में भी रूस पीछे हट गया था और उसने हमें लेसर गाइडेड बम नहीं भेजे थे।
और फिर ये कोई देश नहीं है कि हम इनसे कोई वार्ता कर सके। ये निजी कम्पनियां है, और सिस्टम से बाहर काम करती है। ये बोल देंगे ये सामान बनाकर बेचना हमारा धंधा है। आपसे पूछकर बनायेंगे और बेचेंगे क्या !! तुम्हारी हैसियत है तो तुम भी बना लो, कौन रोक रहा है !!
मिसाल के लिए, जब भारत का कारगिल युद्ध हुआ तो हमें लेसर गाइडेड बमों की जरूरत थी, और ये बम सिर्फ इन्ही कंपनियों को बनाने आते है। यदि हमें ये बम नहीं मिलते तो हम कारगिल नहीं जीत सकते थे !! यह एक तथ्य है !! और अभी जब हमें एयर स्ट्राइक करनी थी तो फिर से हमें लेसर गाइडेड बमों की जरूरत थी, और फिर से हमें इनसे विनती करनी पड़ी कि वे हमें लेसर गाईडेड बम उपलब्ध कराए !! यदि ये कम्पनियां हमें बम न भेजती तो स्ट्राइक न होती थी !! यह एक तथ्य है !!
कारगिल में जब हमारी यह कमजोरी खुलकर नागरिको के सामने आ गयी थी तो वाजपेयी ने लेसर गाईडेड बम (सुदर्शन) बनाने का प्रोजेक्ट शुरू किया था। लेकिन तमाम कोशिशो के बावजूद हम काम आने लायक लेसर गाइडेड बम नहीं बना सके !! यह भी एक तथ्य है !!
अभी ये सिर्फ हथियार कम्पनियां है। इसके बाद तेल निकालने वाली कम्पनियां आती है। भारत के पास तेल के कुँए तो है लेकिन तेल निकालने की तकनीक नहीं है। दुनिया में तेल निकालने की तकनीक भी लगभग दर्जन भर कंपनियों के पास ही है। अब भारत अपना 80% तेल भी आयात करता है, और हम अपने 80% हथियार भी विदेशियों से लेते है !!
हथियार कम्पनियों के मालिको ने पहले सत्ताओ को कंट्रोल किया, और फिर इकॉनोमी को कंट्रोल करने के लिए उन्होंने बैंक खोले। अमेरिका के फेडरल रिजर्व बैंक ( जो डॉलर छापता है ) पर गूगल करिए। इसकी होल्डिंग प्राइवेट बैंको के पास है। इसके बाद इन्होने तेल निकालने की तकनीक जुटाई और इस पर एकाधिकार बनाया।
इसके बाद चिकित्सीय उपकरण जैसे MRI, अल्ट्रा साउंड, हार्ट सिटी स्कैनर एवं आवश्यक दवाइयाँ बनाने वाली कम्पनियां। और ये जो मशीने बनाते है उनकी तकनीक भी कुछ गिनी चुनी कंपनियों के पास है। और फिर इन ताकतवर कंपनियों के पीछे अमेरिका की अन्य मल्टीनेशनल कम्पनियां जैसे बैंक, खनन, बीमा, संचार, कम्प्यूटर आदि।
कुल मिलाकर कुछ 100 बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एक समूह है, जिनके पास ऐसी तकनीक है जो दुनिया के 190 देशो के पास नहीं है। और कुछ 30-40 अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच घराने है, जो पिछले 150 वर्षो से इन कम्पनियों को चला रहे है। यही अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच धनिक पेड मीडिया के प्रायोजक है !!
इन कम्पनियों की बढ़त तकनीक की वजह से है। पिछली 2 सदियों से इन्होने इस तकनीक पर एकाधिकार बनाकर रखा है। अन्य देश यदि यह तकनीक जुटा लेते है तो इनकी ताकत खत्म हो जायेगी। अत: इन कम्पनियों के मालिक पिछले 200 वर्षो से बराबर इस मद में निवेश कर रहे है कि अन्य देश यह तकनीक न जुटाएं।
यदि पीएम ऐसे क़ानून छापने लगता है जिससे अमुक देश में तकनिकी उत्पादन होने लगे तो ये कम्पनियां अपना बाजार खोने लगेगी। अत: अपने कारोबारी हितो को बचाने और अतिरिक्त मुनाफा बनाने के लिए उन्हें पीएम को कंट्रोल की जरूरत होती है। और पीएम को कंट्रोल करने के लिए इन्हें मीडिया पर कंट्रोल चाहिए !!
पेड मीडिया के अंग : पेड मीडिया सिर्फ न्यूज चेनल एवं अखबार नहीं है। इसका फैलाव इससे कहीं विस्तृत एवं गहरा है।
- मुख्य धारा के सभी न्यूज चैनल एवं सभी मनोरंजन चैनल
- मुख्य धारा के सभी अख़बार
- सोशल मीडिया कम्पनियां
- गणित-विज्ञान-एकाउंट्स को छोड़कर सभी विषयों की पाठ्यपुस्तकें एवं साहित्य
- मुख्यधारा की सभी खबरिया एवं मनोरंजन मैगजीने
- मुख्यधारा की सभी फ़िल्में
जब पेड मीडिया के प्रायोजको का नियंत्रण नेताओं पर कमजोर हो जाता है, तो उनके एजेंडा भी धीमा हो जाता है, और जब उनका नियंत्रण बढ़ता है तो उनके एजेंडे की रफ़्तार भी बढ़ जाती है। इस तरह पिछले 74 सालों में नियंत्रण घटने-बढ़ने के कारण उनके एजेंडे की रफ़्तार भी घटती-बढती रहती है। किन्तु 2001 के बाद से उनका नियंत्रण लगातार बढ़ता जा रहा है, और आज यह इतना बढ़ चुका है कि पेड मीडिया के प्रायोजक भारत में भारत से भी ज्यादा ताकतवर हो चुके है।
1947 से 1990 तक भारत में पेड मीडिया के प्रायोजको का नियंत्रण कब बढ़ा / घटा, जानने के लिए यह जवाब पढ़ें – क्या इंदिरा गांधी वाक़ई सबसे ताक़तवर भारतीय प्रधानमंत्री थीं?
.
——————-
.
खंड 2 ; पेड मीडिया के प्रायोजको का एजेंडा क्या है ?
.
उनका मुख्य एजेंडा अपने कारोबारी हितो की रक्षा करना है। चूंकि उनकी शक्ति का स्त्रोत हथियारों की तकनीक पर टिका हुआ है, अत: किसी देश के नेताओं को नियंत्रण में लेने के बाद वे उन्हें बाध्य करके ऐसे क़ानून छपवाते है जिससे देश तकनिकी वस्तुओं का उत्पादन न कर सके। इसके लिए वे गेजेट एवं पेड मीडिया का इस्तेमाल करते है।
- गेजेट में वे ऐसी इबारते छपवाते है जिससे उनकी शक्ति बढे
- और नागरिको को भ्रमित करने के लिए वे पेड मीडिया का इस्तेमाल करते है
जवाब के इस भाग में मैंने उन कानूनों एवं लाक्षणिक बिन्दुओ के बारे में जानकारी दी है जिनका अवलोकन करके आप यह जान सकते है कि भारत में अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक अपना एजेंडा किस गति से लागू कर रहे है।
अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच धनिकों का एजेंडा :
.
(1) आर्थिक नियंत्रण बनाने के लिए
.
(1.1) भारत के प्राकृतिक संसाधन एवं खनिज लूटने के लिए उनका अधिग्रहण करना।
(1.2) आवश्यक सेवाओं जैसे मीडिया, पॉवर, बैंकिंग, माइनिंग, रेलवे, एविएशन, ऑटो मोबाइल, निर्माण, कृषि, दवाइयाँ आदि के कारोबार पर एकाधिकार बनाना।
- वे पेड मीडिया पार्टियों एवं उनके नेताओं का इस्तेमाल करके गेजेट में लगातार ऐसी इबारतें छपवायेंगे जिससे देश की राष्ट्रिय संपत्तियां, प्राकृतिक संसाधन, सार्वजनिक उपक्रम आदि बिक जायेंगे और ये संपत्तियां अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच धनिकों के स्वामित्व में चली जाएगी।
- पेड मीडिया में इस बेचान को एक सधी हुयी आर्थिक नीति एवं साहसिक फैसले के रूप में बताया जाएगा। नागरिको का ध्यान बंटाने के लिए वे अस्पष्ट आर्थिक शब्दावली जैसे विनिवेश, विदेशी निवेश, आर्थिक सुधार, निजीकरण, पीपीपी मोड़, उदारीकरण, भूमंडलीकरण, पूंजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद, नव उदारवाद आदि का इस्तेमाल करते है।
[ उदारहण के लिए, अभी टाटा झारखंड में 1 रू सालाना की दर पर कोयला खोद रहा है, जबकि बाजार भाव 2,000 रू टन का है। और यह जानकारी भी सामने इसीलिए आ पाई क्योंकि जियो के कारण डोकोमो का धंधा सिकुड़ने लगा और टाटा ने जियो के रास्ते में सरकारी अडंगे लगाने शुरू किये। और फिर रिलायंस ने टाटा की घड़ी दबाने के लिए फर्स्ट पोस्ट को यह खबर लगाने के लिए पेमेंट की !! ऐसी सैंकड़ो खदाने है जहाँ से इसी तरह से खनिज लूटे जा रहे है।
पेड मीडिया इन्हें रिपोर्ट नहीं करता इसीलिए हमें यह मालूम नहीं होता। टाटा 1947 से ही 1 रू में यह कोयला खोद रहा है, लेकिन 74 साल में किसी ने भी इस खबर को रिपोर्ट नहीं किया। टाटा अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच धनिकों की शेल कम्पनी है। जब ब्रिटिश गए थे इन्हें इस तरह के कई माइनिंग राइट्स मुफ्त में दे गए थे। आज भी इनके सभी धंधे अमेरिकन एवं ब्रिटिश धनिकों की मशीनों पर चल रहे है। 1990 के बाद से अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों ने सीधे भारत में आना शुरू किया और अब वे बेहद तेजी से भारत के संसाधनों का अधिग्रहण कर रहे है। ]
(1.3) भारत में तकनिकी उत्पादन करने वाली छोटी स्वदेशी इकाइयों को बाजार से बाहर करना।
तकनिकी उत्पादन करने वाले स्थानीय छोटे कारखानों को बाजार से बाहर करना उनका मुख्य एजेंडा है। जिस देश में छोटे कारखानों का आधार टूट जाता है, वह देश हमेशा के लिए तकनीकी वस्तुओ के लिए परजीवी हो जाता है। अत: अमेरिकी-ब्रिटिश बहुराष्ट्रीय कम्पनियां जहाँ भी जाती है वहां के तकनिकी उत्पादन करने वाले स्थानीय कारखानों को गायब करने में काफी संजीदगी से काम करती है। तकनिकी आधार टूटने के बाद अमुक देश हर क्षेत्र में तकनीक के लिए अमेरिकी-ब्रिटिश कम्पनियों का ग्राहक बन जाता है।
- बॉटम 80% का गणित-विज्ञान का आधार तोड़ना।
- अनुत्पादक नस्ल का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने के लिए प्रतिभाशाली छात्रों को इतिहास, राजनीती विज्ञान, मनोरंजन, खेलकूद आदि जैसे क्षेत्रो में जाने के लिए प्रेरित करना।
- रेग्रेसिव टेक्स सिस्टम में छोटे कारोबारीयों का कारोबार बड़ी फैक्ट्रियो के पास चला जाता है। अत: वे रिग्रेसिव टेक्स प्रणाली के समर्थन, एवं प्रोग्रेसिव टेक्स के सख्त खिलाफ है। सेल्स टेक्स, एक्साइज टेक्स, वैट एवं जीएसटी आदि सभी रिग्रेसिव टेक्स प्रणालियाँ है।
- वे गेजेट में ऐसी इबारतें छापेंगे जिससे शहरी क्षेत्र की जमीन महंगी बनी रहे। जमीन की कीमतें ऊँची रहने से कारखाने लगाना मुश्किल हो जाता है।
- तकनिकी उत्पादन तोड़ने के लिए उन्हें अदालतों एवं पुलिस का ऐसा स्ट्रक्चर चाहिए कि पैसा फेंकने वाले का काम हो सके। यदि किसी देश में अदालतें एवं पुलिस ईमानदार है तो तकनिकी विकास में विस्फोटक विकास होने लगता है। अत: वे अदालतों को किसी भी कीमत पर केंद्रीकृत बनाये रखना चाहते है।
.
(2) सैन्य नियंत्रण बनाने के लिए
.
आर्थिक नियंत्रण बढ़ने के साथ ही अगले चरण में वे सैन्य नियंत्रण बनाना शुरू करते है। यदि कोई देश अपने आर्थिक क्षेत्र अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों को देने से इनकार करता है तो फिर कोई न कोई बहाना से सेना भेजकर पहले सैन्य नियंत्रण बनाया जाता है, और फिर वे अर्थव्यवस्था का अधिग्रहण करना शुरू करते है। ईराक इसी मॉडल का शिकार हुआ था, और अब ईरान का नंबर है। भारत ने आर्थिक नियंत्रण देना स्वीकार कर लिया अत: हम युद्ध से बच गए। और अब वे सैन्य नियंत्रण बढ़ाने की इबारतें गेजेट में छपवा रहे है।
(2.1) भारत की सेना पर नियंत्रण बनाने के लिए अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच कम्पनियों के हथियार इंस्टाल करना।
- अगस्तावेस्ट लेंड, रफाल आदि के बाद अभी जब ट्रंप ने भारत की विजिट की तो फिर से भारत को 3 बिलियन डॉलर के ब्लेक हॉक हेलीकोप्टर लेने के लिए बाध्य किया। इन सभी जटिल हथियारों को खरीदते समय निर्माता से End Use Monitoring Agreement करना होता है। EUMA और स्पेयर पार्ट्स की निर्भरता के कारण सेना हथियार का इस्तेमाल करने के लिए अमुक निर्माता पर हमेशा निर्भर बनी रहती है।
- भारत ने इंसास राइफलो में सुधार एवं उत्पादन को बेहद धीमा कर दिया है, और अमेरिका भारतीय सेना में अपनी राइफले इंस्टाल कर रहा है। पिछले वर्ष ही सेना ने इंसास का ऑर्डर केंसिल करके 6 लाख रायफल का कोंट्रेक्ट अमेरिकी कम्पनी को दिया है।
(2.2) भारत के सैन्य परमाणु कार्यक्रम को फिर से शुरू न होने देना।
- पाकिस्तान के पास सामरिक बम है और वह आज भी अपनी परमाणु क्षमता निरंतर बढ़ा रहा है। भारत के पास सामरिक परमाणु बम नहीं है, और अमेरिका 123 एग्रीमेंट करके 2008 में ही हमारा परमाणु कार्यक्रम बंद करवा चुका है। 2010 में पोकरण-2 के मुख्य वैज्ञानिक ने ( रिटायर होने के बाद ) सार्वजनिक रूप से यह बात कही थी कि भारत का हाइड्रोजन बम का टेस्ट असफल रहा था। फिशन ब्लास्ट का परिक्षण सफल था, किन्तु हम फिशन और लोइल्ड डिवाइस का परिक्षण तो 1974 में ही सफलतापूर्वक कर चुके थे। बाद में इसकी पुष्टि परिक्षण में शामिल अन्य वैज्ञानिक ने भी की। इसके अलावा भारत ने आज तक कभी भी वातावरणीय परिक्षण भी नहीं किया है। और फिर भी हम अपना सैन्य परमाणु कार्यक्रम बंद कर चुके है।
(2.3) भारत एवं विशेष रूप से कश्मीर में अपने सैन्य अड्डे बनाना।
- अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक ईरान+चीन के खिलाफ भारत की सेना एवं संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहते है, और इसके लिए उन्हें भारत की जमीन-सेना पर पूर्ण नियंत्रण चाहिए। अभी आप भारत में जो हिन्दू-मुस्लिम तनाव देख रहे है, यह इसी नीति का हिस्सा है। भारत में हिन्दू-मुस्लिम तनाव बढ़ने के बाद जब अमेरिका भारत की सेना एवं संसाधनों का इस्तेमाल ईरान के खिलाफ करेगा तो एंटी-मुस्लिम सेंटिमेंट की लहर की चपेट में आकर भारतीय हिन्दू ईरान में सेना भेजने का विरोध नहीं करेंगे।
(2.4) नागरिको को हथियार विहीन बनाये रखना।
यह सब तभी तक चलता है, जब तक नागरिको को इस बारे में पता नहीं रहे कि उनका पीएम अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के नियंत्रण में जा चुका है। यदि राजनैतिक कार्यकर्ता एवं नागरिक पेड मीडिया की चपेट से बाहर आ जाते है, या कोई नेता अमेरिकी-ब्रिटिश धनिको के खिलाफ हो जाता है तो अमेरिकी-ब्रिटिश कम्पनियों को निष्कासित करने और सेना को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वदेशी हथियारों के निर्माण के लिए आवश्यक कानूनों की मांग को लेकर जन आन्दोलन खड़ा हो सकता है।
और तब अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के पास भारत को काबू करने का एक मात्र विकल्प यह होगा कि वह सीधे सेना का इस्तेमाल करे। किन्तु जिस देश के नागरिको के पास हथियार होते है उस देश की सेना को तो हराया जा सकता है, किन्तु टेरेटरी को टेकओवर नहीं किया जा सकता। अत: अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों नागरिको को हथियार रखने की अनुमति देने के सख्त खिलाफ है।
- उन्होंने पेड मीडिया का इस्तेमाल करके भारतीयों के दिमाग में हथियारों के प्रति इतनी नफरत भर दी है कि यदि आप घर घर जाकर फ्री में बंदूके बाँटोगे तब भी अधिकांश नागरिक इन्हें लेने से इनकार कर देंगे। उन्होंने प्रत्येक भारतीय के दिमाग में यह वाक्य नट बोल्ट से अच्छी तरह से कस दिया है कि – यदि भारतियों को बंदूक रखने की अनुमति दे दी गयी तो वे एक दुसरे को मार देंगे !!
.
(3) धार्मिक नियंत्रण बनाने के लिए :
.
अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों का गठजोड़ मिशनरीज के साथ है। अत: जब किसी देश पर उनका आर्थिक-सैन्य नियंत्रण बढ़ता है, तो अगले चरण में वे स्थानीय धर्मो को आपस में लड़वाकर कन्वर्जन के प्रयास शुरू करते है। पिछले 400 सालो से अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच धनिकों का यही ट्रेक रहा है।
(3.1) भारत में सांप्रदायिक आधार पर अलगाववादी हिंसक गृह युद्ध की जमीन तैयार करना।
(3.2) भारतीय मुस्लिमों को अलग देश की मांग करने के लिए तैयार करना
(3.3) भारत को 3 हिस्सों में विभाजित करना ( कश्मीर एवं पूर्वोत्तर )।
- वे शुरू से ही भारत में जनसँख्या नियंत्रण क़ानून डालने के खिलाफ रहे है। इससे धार्मिक जनसँख्या का संतुलन बिगड़ता है, और अलगाव की जमीन तैयार होती है।
- इसके अलावा वे भारत में रह रहे 2 करोड़ अवैध विदेशी निवासियों को खदेडने के भी खिलाफ है, ताकि जरूरत पड़ने पर इन्हें किसी भी समय हथियार भेजकर गृह युद्ध ट्रिगर किया जा सके।
- हिन्दू-मुस्लिम तनाव बढ़ाने के लिए वे गाय का भी कई तरीको से इस्तेमाल करते है। आजादी से पहले भी उन्होंने गाय का इस्तेमाल हिन्दू-मुस्लिम को लड़ाने में किया था।
(3.4) सरकारी नियंत्रण में लेकर मंदिरों की संपत्तियां लूटना एवं उत्सवों में होने वाले धार्मिक जमाव को तोडना।
- वे मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के भी खिलाफ है, ताकि मंत्रियो एवं जजों का इस्तेमाल करके मंदिर की जमीनो को बेचा जा सके।
- उत्सवो में धार्मिक जमाव तोड़ने के लिए वे भ्रष्ट जजों एवं पेड मीडिया का इस्तेमाल करते है।
(3.5) देशी गाय की प्रजाति को लुप्त प्राय करके इसके उत्पादों पर एकाधिकार बनाना।
(3.6) भारत में बड़े पैमाने पर कन्वर्जन करना।
.
(4) सामाजिक एवं सांस्कृतिक एजेंडा
.
सामाजिक-पारिवारिक कलेश, जातीय-क्षेत्रीय अलगाव से उत्पादक व्यक्तियों को मानसिक एवं आर्थिक हानि होती है, और समग्र देश की उत्पादकता गिर जाती है। साथ ही इसमें कारोबार एवं धर्मांतरण भी है। संस्कृति का रूपांतरण करने के बाद कन्वर्जन करना आसान हो जाता है।
(4.1) जाति एवं नस्ल के आधार पर हिंसक अलगाव खड़ा करना।
(4.2) लैंगिक आधार पर आपसी घर्षण बढ़ाकर परिवार एवं विवाह नामक संस्थाए ध्वस्त करना।
- पहले 498A का इस्तेमाल करके उन्होंने परिवारों को तोड़ा, और फिर लिव इन को कानूनी करके लिव इन संतानों को कानूनी मान्यता दी।
- उन्होंने 2012 में यह क़ानून छापा कि, पुरुष पर यौन उत्पीड़न साबित करने के लिए लड़की का सिर्फ बयान ही पर्याप्त होगा। इन सभी क़ानूनो के समग्र प्रभाव से स्त्री-पुरुष के बीच सामाजिक संघर्ष बढ़ गया, और यह आगे भी बढ़ता जाएगा।
(4.3) फूहड़ता, अश्लीलता एवं नग्नता को सार्वजनिक स्वीकार्यता दिलाना।
- उन्होंने सेल्फ सेंसरशिप का क़ानून छापा ताकि वेब सीरिज, इंटरनेट आदि में गाली गलौज और यौन विकृतियों की सामग्री को बढ़ावा दिया जा सके।
- पारिवारिक स्तर पर अश्लीलता एवं फूहड़ता को स्वीकार्यता दिलाने के लिए वे मनोरंजन चेनल्स का इस्तेमाल करते है।
(4.4) दवाईयों पर निर्भरता बढ़ाने के लिए खाद्य पदार्थो में मिलावट को बढ़ावा देना।
(4.5) अफीम एवं भांग पर प्रतिबंधो को कठोर करना।
- इन प्रतिबंधो से एक तरफ दवाईयों की बिक्री बढ़ती है, और दूसरी तरफ युवाओं को शराब, ड्रग आदि नशो की और धकेलना आसान हो जाता है। मिशनरीज कन्वर्जन में नशे का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर करती है। अभी पंजाब में इस मॉडल पर काम चल रहा है। आगे अन्य राज्यों का भी नम्बर आएगा।
.
(5) राजनैतिक एजेंडा
.
वे राजनीति में केंद्रीकृत व्यवस्था चाहते है ताकि बड़ी पार्टियों में पेड मीडिया का इस्तेमाल करके नेताओं को प्लांट किया जा सके। यदि पार्टियाँ एवं नेता उनके कंट्रोल से निकल गए तो वे गेजेट में इबारतें छपवाने की क्षमता खो देंगे।
(5.1) EVM जारी रखना।
- evm उन व्यक्तियों के निर्देश पर परिणाम दिखाती है जो व्यक्ति इसका प्रोग्राम लिखते है। नेताओ को कंट्रोल करने के लिए evm उनका सबसे प्रभावी टूल है। पेड मीडिया का इस्तेमाल करके वे इस तरह की गलतफहमी फैलाते है तो अमुक राजनीतिक दल या पीएम evm द्वारा वोटो की हेरा फेरी कर रहा है। जबकि केंचुआ और evm पर पीएम का कोई कंट्रोल नहीं होता है।
(5.2) छोटी पार्टियों को कमजोर करना।
- वे निरंतर ऐसे क़ानून छापते है जिससे छोटी पार्टियों के लिए चुनाव लड़ना मुश्किल होता जाए और सिर्फ बड़ी पार्टियाँ मैदान में रहे।
(5.3) बड़ी पार्टियों का केन्द्रीयकरण करना।
- वे राजनैतिक पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र यानी कि पार्टी मेम्बर्स को वोटिंग राइट्स देने के खिलाफ है। इससे वे भारत की बड़ी पार्टियों में ऐसे नेताओं को आगे बढ़ा पाते है जो उनके एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम कर रहे है।
(5.4) युवाओं को राजनीती से दूर रहने के लिए प्रेरित करना
- ऐसा करने के लिए पेड मीडिया का इस्तेमाल किया जाता है।
(5.5) नागरिको के मतदान एवं चुनावी अधिकारों में कटौती करना
- उन्हें इस तरह का सिस्टम चाहिए कि एक बार वोट देने के बाद अगले 5 वर्ष तक मतदाताओ की प्रशासनिक-राजनैतिक प्रक्रियाओ में कोई भूमिका न रहे, ताकि वे पीएम एवं मंत्रियो को घूस देकर या उनका हाथ मरोड़ कर मनमर्जी की इबारतें गेजेट में निकलवा सके। वोट वापसी, जनमत संग्रह प्रक्रियाएं इस मेकेनिज्म को पूरी तरह से तोड़ देती है। अत: वे इन दोनों प्रक्रियाओ को गेजेट में छापने के सख्त खिलाफ है।
.
(6) प्रशासनिक एजेंडा :
.
पुलिस एवं अदालतों की सरंचना इस तरह रखना कि पैसा फेंककर अपना काम करवाया जा सके
पुलिस एवं अदालतें सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। जो आदमी पुलिस एवं जजों को नियंत्रित करता है, उस पर कोई भी क़ानून लागू नहीं होता। क्योंकि जब भी कोई क़ानून तोड़ा जाता है अपराधी को पकड़ने का काम पुलिस, और दंड देने का काम जज करता है।
वे इतने बड़े भारत में अपने एजेंडे को इसीलिए आगे बढ़ा पा रहे है, क्योंकि भारत में जज सिस्टम है। जज सिस्टम का डिजाइन इस तरह का होता है कि इसमें चयनात्मक न्याय दिया जा सकता है। मतलब, जब पैसे वाला आदमी फंसता है तो वह जज को पैसा देकर अपने पक्ष में फैसला निकलवा लेगा। इसी तरह जिसके पास पैसा है वह अपने प्रतिद्वंदियों को भी उल्टे सीधे मुकदमों में फंसा कर अंदर करवा सकता है।
अदालतों एवं पुलिस को अपनी पकड़ में रखने के लिए वे भारत में जज सिस्टम जारी रखना चाहते है, एवं जूरी सिस्टम से अत्यंत घृणा करते है। वे जूरी सिस्टम से इतनी घृणा करते है कि उन्होंने भारत की सभी पाठ्यपुस्तको में से इस लफ़्ज को निकाल दिया है। आपको भारत की किसी भी अखबार, साहित्य, पाठ्यपुस्तक और यहाँ तक की क़ानून की किताबों तक में जूरी सिस्टम के बारे में जानकारी नहीं मिलेगी !!
उल्लेखनीय है कि अमेरिका एवं ब्रिटेन की अदालतों में जूरी सिस्टम है, जज सिस्टम नहीं। और जूरी सिस्टम होना सबसे बड़ी वजह रही कि अमेरिका-ब्रिटेन-फ़्रांस जैसे देश भारत जैसे देशो से तकनीक के क्षेत्र में आगे, काफी आगे निकल गए। जूरी मंडल ने वहां के छोटे-मझौले कारोबारियों की जज-पुलिस-नेताओं के भ्रष्टाचार से रक्षा की और वे तकनिकी रूप से उन्नत विशालकाय बहुराष्ट्रीय कम्पनियां खड़ी कर पाए !!
.
—————
.
खंड 3 ; पेड मीडिया का एजेंडा आगे बढ़ाने वाले लोगो को चिन्हित करना :
.
अपने ताकतवर हथियारों का इस्तेमाल करके वे पेड मीडिया पर कंट्रोल लेते है और फिर पेड मीडिया की सहायता से नेता खड़े करते है। नागरिक एवं कार्यकर्ता इसे देख न सके इसके लिए वे पेड मीडिया का इस्तेमाल करते है। जो नेता उनके एजेंडे के खिलाफ जाता है उसका प्लग निकाल दिया जाता है, और नया नेता प्लांट कर दिया जाता है।
आप पिछले 20 वर्षो का अवलोकन करें तो देखेंगे कि तमाम सत्ता परिवर्तनों के बावजूद गाड़ी इसी दिशा में आगे बढ़ रही है, और आगे भी गाड़ी इसी दिशा में जायेगी। पेड मीडिया में जितने भी चेहरे आप देखते है, वे पेड मीडिया के एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम करते है। जो व्यक्ति या नेता या संस्था या पार्टी या बुद्धिजीवी ऊपर दिए गए एजेंडे के किसी भी बिंदु के खिलाफ जायेगा उसे मुख्य धारा के पेड मीडिया में आप फिर नहीं देखेंगे।
यह परिदृश्य बेहद जटिल एवं फैला हुआ होने के कारण ऊपर दिए गए विवरण पर्याप्त सूचना नहीं देते है। मैंने उपरोक्त बिन्दुओ में से कई बिन्दुओ पर इस बारे में विस्तृत जवाब भी लिखे है, जिनमे उन इबारतों के बारे में बताया है जिनकी सहायता से वे ऐसा कर रहे है। साथ ही यह भी बताया है कि किन इबारतो को गेजेट में छापने से इस प्रक्रिया को रोका जा सकता है। अधिक जानकारी के लिए वे जवाब पढ़ें । जिन विषयों पर लिखने से रह गया है, समय मिलने पर मैं उन पर भी विस्तृत रूप से लिखूंगा।
बहरहाल, पेड मीडिया की भारत पर पकड़ कितनी गहरी है, इसे समझने का एक मात्र तरीका यह है कि – ऊपर दिए हुए किसी भी एक बिंदु को चुने जिसे आप समस्या की तरह देखते है। और फिर जब आप अमुक समस्या का समाधान ढूँढने की दिशा में जाना शुरू करेंगे तो आपका सामना पेड मीडिया की ताकत से होगा। जब तक आप सिर्फ समस्या से चिपके रहेंगे लेकिन समाधान की तरफ नहीं जायेंगे तब तक आप पेड मीडिया द्वारा रचे गए इस परिदृश्य को ठीक से समझ नहीं सकेंगे।
निचे मैंने 1 बिंदु को आधार बनाकर उन कदमो के बारे में बताया है, जिन्हें उठाकर आप जान सकते है कि कौनसे नेता, कार्यकर्ता, पार्टियाँ, बुद्धिजीवी आदि पेड मीडिया के एजेंडे को आगे बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे है।
1.4. बॉटम 80% का गणित-विज्ञान का आधार तोड़ना :
सबसे पहले यह तय करें की क्या आप गणित-विज्ञान के गिरते स्तर को एक समस्या मानते है। यदि आप इसे समस्या नहीं मानते है तो ऐसे किसी अन्य बिंदु को चुन सकते है, जिसे आप समस्या मानते है। वैसे भारत के अधिकांश नागरिक इसे एक समस्या की तरह नहीं देखते है। वे इसे “बच्चों पर पढ़ाई का बढ़ता बोझ” से जोड़ने की कोशिश करते है।
और वे गणित-विज्ञान को “बच्चों पर पढ़ाई का बढ़ता बोझ” की दृष्टी से इसीलिए देखते है क्योंकि पेड मीडिया ने उन्हें इसी तरह की पुड़िया दी है। 1990 से पहले तक भारत में गणित-विज्ञान का स्तर आज के मुकाबले काफी बेहतर था, जिसे तोड़ने के लिए धीरे धीरे उन्होंने गेजेट में कई इबारतें छापी। इस बारे में विस्तृत रूप से मैंने इस जवाब में बताया है – Pawan Kumar Sharma का जवाब – भारत हथियारों की इंजीनियरिंग में अमेरिका को कैसे पछाड़ सकता है?
पेड मीडिया पार्टियों के नेताओं एवं कार्यकर्ताओ से सोशल मीडिया पर सार्वजनिक रूप से निचे दिया गया प्रश्न पूछिए :
“भारत में गणित-विज्ञान का स्तर सुधारने के लिए आप गेजेट में जो इबारत छपवाना चाहते है, कृपया उसका ड्राफ्ट मुझे सार्वजनिक रूप से उपलब्ध करवाएं।“
यह प्रश्न सुनकर बहुधा वे आपसे इस आशय की बात कहेंगे कि हमारी पार्टी प्रत्येक छात्र को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा मुफ्त में देगी एवं सरकारी स्कूलों में सुधार लाएगी।
तब आप उनसे स्पष्ट रूप से कहिये कि – “श्रीमान, मुझे न तो गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा में रुचि है, न ही मुफ्त शिक्षा में रुचि है। मेरा इंटरेस्ट सिर्फ गणित-विज्ञान का स्तर सुधारने में है। और मुझे सिर्फ उस ड्राफ्ट में रुचि है जिसे गेजेट में छापने से आपके हिसाब से गणित-विज्ञान के स्तर में सुधार आयेगा।”
कृपया इस बात को अच्छी तरह से नोट करें कि पेड मीडिया के प्रायोजक अपना एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए गेजेट की इबारतो का इस्तेमाल करते है। अत: यह बेहद जरुरी है कि आप गेजेट में आने वाली इबारत यानी ड्राफ्ट पर फोकस करें। यदि आपने अपनी चर्चा को ड्राफ्ट एवं गेजेट से जरा भी इधर उधर होने दिया तो वे आपको बुत्ता देने में कामयाब हो जायेंगे, और अपनी बकवास में आपका सालों तक ऐसा टाइम पास करेंगे कि आपको पता भी नही चलेगा।
वे लगातार बात को ऐसे खांचे में ले जाने की कोशिश करेंगे कि ये दो शब्द ( ड्राफ्ट और गेजेट ) चर्चा से बाहर रहे। तो जैसे ही वे चर्चा को पटरी से उतारते है, आप तुरंत फिर से इस ट्रेक पर लौट आइये कि — “मुझे गणित-विज्ञान का स्तर सुधारने की वह इबारत चाहिए है जिसे आप गेजेट में छापने का समर्थन करते है। यदि आपके पास इबारत है तो मुझे दो, वर्ना इस पॉइंट पर आगे बात करने का कोई फायदा नहीं है। और यह साबित है कि आपको गणित-विज्ञान का स्तर सुधारने में कोई रुचि नहीं है।
तब उनमे से कुछ लोग चर्चा को समाधान, ड्राफ्ट एवं गेजेट की पटरी से उतारने के लिए आपसे कहेंगे कि आप कन्स्पेरेसी थ्योरिस्ट है। उनसे कहिये कि हम दोनों ही भारत में गणित-विज्ञान के गिरते स्तर को एक समस्या के रूप में देखते है। हमारे पास इस समस्या की वजहें अलग अलग हो सकती है, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं आता। फर्क इस बात से आता है कि अब हमें समाधान के लिए किस दिशा में आगे बढ़ना है।
बस अब अमुक नेता, कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी आपको न तो कोई जवाब देगा और न ही आपसे शिक्षा आदि के बारे में कोई डिस्कस करेगा। अब आप इसे और भी अच्छे से समझने के लिए अगला कदम उठाइये। आप वह इबारत जुटाइए(*) जिसे गेजेट में छापने से भारत में गणित-विज्ञान का स्तर सुधरेगा। और फिर आप अमुक व्यक्ति, नेता, कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी को अमुक ड्राफ्ट देकर कहिये कि – मेरा मानना है कि इस इबारत के गेजेट में आने से भारत में गणित-विज्ञान के गिरते स्तर में सुधार आने लगेगा। तो क्या आप इस ड्राफ्ट का समर्थन करते है।
[ (*) ऊपर जितनी भी समस्याएं दी गयी है उनके समाधान के ड्राफ्ट की इबारतें आपको जूरी कोर्ट के किसी भी कार्यकर्ता के पास मिल जायेगी। आप मुझसे भी भारत की किसी भी समस्या के समाधान की प्रस्तावित इबारते मांग सकते है, मैं ये उपलब्ध करवा दूंगा। ]
यदि अमुक व्यक्ति आपके द्वारा प्रस्तावित ड्राफ्ट का विरोध करता है तो फिर से उससे ड्राफ्ट मांगिये। उससे कहिये कि ठीक है मेरा ड्राफ्ट बकवास है, तो आप अपना ड्राफ्ट बताइये। तो वह स्टेंड लेगा कि मेरे पास कोई ड्राफ्ट नहीं है और मैं तुम्हारे ड्राफ्ट का भी समर्थन नहीं करता। मतलब, वह फिर से समस्या को डिस्कस करने का ट्रेक बनाने लगेगा, ताकि ड्राफ्ट विहीन चर्चा जारी रखी जा सके।
बस इस तरह आप जैसे जैसे अपने आस पास के उन कार्यकर्ताओ एवं बुद्धिजीवियो आदि से यह प्रश्न पूछना शुरू करेंगे जो शिक्षा आदि पर लिखते-बोलते या गतिविधियाँ करते रहते है, वैसे वैसे आपको पेड मीडिया के एजेंडे एवं उनकी पकड़ का अंदाजा होता चला जाएगा।
.
गणित-विज्ञान का स्तर सुधारने के लिए मेरा प्रस्ताव शिक्षा अधिकारी को वोट वापसी के दायरे लाकर सात्य प्रणाली लागू करना है। सात्य प्रणाली के आने से भारत में गणित-विज्ञान का स्तर तेजी से सुधरने लगेगा। सात्य प्रणाली लागू करने के लिए गेजेट में जो इबारत छापी जानी है उसे इस जवाब का अंतिम खंड देखें – Pawan Kumar Sharma का जवाब – दिल्ली के सरकारी स्कूलों की स्थिति पहले से अच्छी कैसे हुई है?
.
वैसे गणित-विज्ञान को तोड़ना उनके एजेंडे की वरीयता में काफी निचे आता है। क्योंकि गणित-विज्ञान का स्तर सुधरने से तकनिकी उत्पादन नहीं होता। तकनिकी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रोग्रेसिव कर प्रणाली और जमीन की कीमतें कम करने के क़ानून चाहिए।
रिक्त भूमि कर ये दोनों काम करता है। अत: रिक्त भूमि कर तीसरे नंबर का वो असली क़ानून है, जो बेहद तेजी से भारत में स्थानीय कारखानों की श्रंखला खड़ी कर देगा। रिक्त भूमि कर से पहले अदालतों का नंबर आता है। मतलब जूरी कोर्ट एसिड टेस्ट है। आप अपने आस पास के लोगो से जजों के भ्रष्टाचार पर बात करके देखिये, वे इस बिंदु पर बात करने को भी राजी नहीं होंगे !!
Hi everyone, it’s my first pay a visit at this web page, and post is actually fruitful
in favor of me, keep up posting such posts.
Very nice article, just what I was looking for.