आयुर्वेद में मुँह का स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए दिनचर्या में विभिन्न प्रक्रियाओं का उल्लेख किया है जैसे दंतधावन (दातुन), कवल और जिह्वानिर्लेखन (जीभ की सफाई)।
दातुन के लिए कई पौंधों का इस्तेमाल हमारे देश में होता आ रहा है। आज भी कई लोग दातुन का उपयोग करते है।
आयुर्वेद में दातुन के लिए कौन से और किस प्रकार के पौधों का इस्तेमाल करना चाहिए इस का विस्तार से वर्णन किया है।
दातुन कषाय (कसैला), तिक्त (कड़वा), और कटु (तीखा) रस का होना चाहिए। इन स्वादयुक्त पोंधों की 12 अंगुली लंबी और छोटी उंगली की परिधि इतनी मोटी टहनियों का दातुन के लिए उपयोग करे।
कृमिनाशक या जन्तुघ्न (एंटीसेप्टिक), व्रणरोपक (घावों को भरनेवाले) और रक्तशोधक गुणों से युक्त वट(बरगद), बबूल, करंज, नीम, अर्जुन, मेसवाक, असन, अर्क, करवीर, खदिर, करवीर, महुआ, अमरगा आदि पोंधों की साफ टहनियों का दातुन के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।