हां. गाड़ियों के टायरों में हवा की जगह पानी भरा जा सकता है, लेकिन सभी गाड़ियों में नहीं.
ट्रैक्टर के टायरों में लगभग 60–80% तक पानी भरा जा सकता है और इसे बैलैस्टिंग ऑफ़ टायर्स (Ballasting of Tyres) कहते हैं.
कई बार कर्षण (Traction) हेतु भार बढ़ाने के लिए या किसी एग्रीकल्चरल मशीन के गुरुत्व केंद्र को जमीन के और करीब पहुंचाने के लिए टायरों में पानी भरा जाता है. पानी ट्यूब वाले और ट्यूबलैस – दोनों ही प्रकार के टायरों में भरा जा सकता है.
एग्रीकल्चरल टायरों के वॉल्व “एयर और वॉटर टाइप” के होते हैं. इस चित्र में आप देख सकते हैं कि टायर में अधिकतम 75% तक पानी भर दिया गया है. इस पानी में कभी-कभी एंटीफ़्रीज़ भी मिलाया जाता है. बहुत ठंडे प्रदेशों में, जहां तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है, वहां ग्लाइकॉल आधारित एंटीफ़्रीज़ का उपयोग करना ज़रूरी हो जाता है.
“एयर और वॉटर टाइप” के वॉल्व इस प्रकार के होते हैं कि पानी भरते समय टायर के भीतर की हवा एक दूसरे छेद से निकल जाती है. ज़रूरी मात्रा में पानी भरने के बाद टायर में हवा का प्रेशर और कठोरता बनाने के लिए हवा भर दी जाती है.
also read : किस पौधे का दातुन हमारे दाँतो के लिए अच्छा है?
ट्रेक्टरों को कभी-कभी पानी से भरे खेतों में काम करना पड़ता है जहां जमीन बहुत फिसलन भरी हो जाती है. ऐसे में हवा भरे टायर जमीन पर फिसलने या एक ही स्थान पर घूमने लगते हैं. ऐसे में कर्षण को बढ़ाने के लिए टायर को बदले बिना उसके भार को बढ़ाना ज़रूरी हो जाते है. टायर के भार को या तो किसी भारी वजन को टायर के साथ बांधकर या टायर में पानी भरकर बढ़ाया जा सकता है. टायर के साथ वजन को बांधना कठिन काम है. इसमें बहुत समय और मेहनत लगती है. इसलिए वॉटर बैलेस्टिंग अर्थात टायर में पानी भरना ही सही सहता है. टायर में पानी भर देने से टायर का वजन पढ़ जाता है जिससे कर्षण में वृद्धि होती है. कर्षण का सीधा संबंध घर्षण से है और घर्षण भार पर निर्भर करता है
Also Read : अब Whatsapp से होगी कमाई