जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही विश्वव्यापी बढ़ोतरी को ‘ग्लोबल वार्मिंग‘ कहा जा रहा है। हमारी धरती सूर्य की किरणों से उष्मा प्राप्त करती है।
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ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापमान बढ़ने का मतलब है कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दिनों में सूखा बढ़ेगा, बाढ़ की घटनाएँ बढ़ेगी और मौसम का मिज़ाज पूरी तरह बदला हुआ दिखेगा।
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क्या है ग्लोबल वार्मिंग?
आसान शब्दों में समझें तो ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है ‘पृथ्वी के तापमान में वृद्धि और इसके कारण मौसम में होने वाले परिवर्तन’ पृथ्वी के तापमान में हो रही इस वृद्धि (जिसे 100 सालों के औसत तापमान पर 10 फारेनहाईट आँका गया है) के परिणाम स्वरूप बारिश के तरीकों में बदलाव, हिमखण्डों और ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और वनस्पति तथा जन्तु जगत पर प्रभावों के रूप के सामने आ सकते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग दुनिया की कितनी बड़ी समस्या है, यह बात एक आम आदमी समझ नहीं पाता है। उसे ये शब्द थोड़ा टेक्निकल लगता है। इसलिये वह इसकी तह तक नहीं जाता है। लिहाजा इसे एक वैज्ञानिक परिभाषा मानकर छोड़ दिया जाता है। ज्यादातर लोगों को लगता है कि फिलहाल संसार को इससे कोई खतरा नहीं है।
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भारत में भी ग्लोबल वार्मिंग एक प्रचलित शब्द नहीं है और भाग-दौड़ में लगे रहने वाले भारतीयों के लिये भी इसका अधिक कोई मतलब नहीं है। लेकिन विज्ञान की दुनिया की बात करें तो ग्लोबल वार्मिंग को लेकर भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं। इसको 21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है। यह खतरा तृतीय विश्वयुद्ध या किसी क्षुद्रग्रह (एस्टेराॅइड) के पृथ्वी से टकराने से भी बड़ा माना जा रहा है।
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ग्लोबल वार्मिंग के कारण (causes of global warming in hindi)
- सूर्य से आने वाली रेडिएशन मुख्य रूप से विज़िबल लाइट और पास की वेवलेंथ के रूप में होती है, जो कि काफी हद तक 0.2 – 41 मीटर की दूरी पर होती है, जो सूर्य के रेडिएटिव तापमान से 6,000 के बराबर होता है। लगभग आधी रेडिएशन विज़िबल लाइट के रूप में होती है, जो हमारी आंखों के लिए अनुकूलित हैं।
- सूर्य की ऊर्जा का लगभग 50% पृथ्वी की सतह द्वारा अब्सॉर्बेड होता है और शेष वातावरण द्वारा प्रतिबिंबित या अब्सॉर्ब हो जाता है।
- अब्सॉर्बेड ऊर्जा सतह को गर्म करती है। जैसे कि आदर्शीकृत ग्रीनहाउस मॉडल, इस गर्मी को थर्मल विकिरण के रूप में खो दिया जाता है। लेकिन वास्तविकता अधिक जटिल होती है; सतह के नजदीक वातावरण काफी हद तक थर्मल विकिरण के लिए ओपेक होता है (“विंडो” बैंड महत्वपूर्ण अपवाद है), और सतह से अधिकांश गर्मी की कमी सेंसिबल हीट और लेटेंट हीट ट्रांसपोर्ट से होती है।
- जल वाष्प, एक महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस की घटती कंसंट्रेशन की वजह से रेडिएटिव ऊर्जा का नुकसान बड़े पैमाने पर वातावरण में अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।
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ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव (effects of global warming in hindi)
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- तापमान वृद्धि
यह अनुमान लगाया गया है कि यदि वर्तमान दर पर ग्रीनहाउस गैसों का इनपुट जारी रहता है तो पृथ्वी का औसत तापमान 2050 तक 1.5 से 5.5 डिग्री सेल्सियस के बीच बढ़ जाएगा। यहां तक की पृथ्वी 10,000 साल तक इतनी गर्म हो जाएगी की यहां जीवन संभव नही होगा। - समुद्र के पानी के स्तर में वृद्धि
आज वैश्विक तापमान में वृद्धि के साथ समुद्र का पानी भी बढ़ रहा है। वर्तमान मॉडल इंगित करते हैं कि 3 डिग्री सेल्सियस के औसत वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि की वजह से अगले 50-100 वर्षों में औसत वैश्विक समुद्र स्तर 0.2-1.5 मीटर तक बढ़ जाएगा। - मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
विभिन्न बीमारियां जैसे मलेरिया, फिलीरियासिस आदि बढ़ जायँगी। - कृषि पर प्रभाव
यह दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की फसलों पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव दिखा सकता है। - बिना दवा के मुंहासों का आ गया रामबाण इलाज, बस दिल लगाकर करना होगा ये काम
सारणी 1 – ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन | |
पॉवर स्टेशन से | 21.3 प्रतिशत |
इंडस्ट्री से | 16.8 प्रतिशत |
यातायात और गाड़ियों से | 14 प्रतिशत |
खेती-किसानी के उत्पादों से | 12.5 प्रतिशत |
जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से | 11.3 प्रतिशत |
रिहायशी क्षेत्रों से | 10.33 प्रतिशत |
बॉयोमास जलने से | 10 प्रतिशत |
कचरा जलाने से | 3.4 प्रतिशत |
ग्लोबल वार्मिंग रोकने के उपाय
वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग में कमी के लिये मुख्य रूप से सी.एफ.सी. गैसों का उत्सर्जन रोकना होगा और इसके लिये फ्रिज़, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों का इस्तेमाल कम करना होगा या ऐसी मशीनों का उपयोग करना होगा जिससे सी.एफ.सी.गैसें कम निकलती हों।
औद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से निकलने वाला धुआँ हानिकारक है और इनसे निकलने वाला कार्बन डाइआॅक्साइड गर्मी बढ़ाता है। इन इकाइयों में प्रदूषण रोकने के उपाय करने होंगे।
वाहनों में से निकलने वाले धुएँ का प्रभाव कम करने के लिये पर्यावरण मानकों का सख्ती से पालन करना होगा। उद्योगों और ख़ासकर रासायनिक इकाइयों से निकलने वाले कचरे को फिर से उपयोग में लाने लायक बनाने की कोशिश करनी होगी और प्राथमिकता के आधार पर पेड़ों की कटाई रोकनी होगी और जंगलों के संरक्षण पर बल देना होगा।
अक्षय ऊर्जा के उपायों पर ध्यान देना होगा यानि अगर कोयले से बनने वाली बिजली के बदले पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और पनबिजली पर ध्यान दिया जाए तो वातावरण को गर्म करने वाली गैसों पर नियंत्रण पाया जा सकता है तथा साथ ही जंगलों में आग लगने पर रोक लगानी होगी।
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