1990 के दशक का शुरुआती समय. देश की राजनीति में ये मंडल-कमंडल का दौर था. लेकिन यूपी के कानपुर देहात में ये बंजर पड़ी जमीन को कब्जाने का दौर था. मुलायम सिंह यादव और कांशीराम उत्तर प्रदेश की राजनीति में पैर जमा चुके थे. और उनकी छाया में पिछड़े समाज के कई इलाकाई नेता तेजी से उभरे और विधायक-सांसद बने. इस दौरान इन नेताओं पर खाली पड़ी बंजर जमीन कब्जाने का आरोप भी लगा. इलाके में अच्छी खासी संख्या में होने के बावजूद ब्राह्मणों की जमीन खिसक रही थी. यही वजह रही कि बंजर जमीन के साथ-साथ राजनीतिक जमीन कब्जाने और इलाके में पिछड़ों की हनक कम करने के लिए ‘विकास’ का सहारा लेना पड़ा.
कानपुर देहात के चौबेपुर इलाके का बिकरू गांव. गांव के एक लड़के ने अपने साथियों के साथ मिलकर पड़ोस के गांव दिब्बा निवादा के कुछ लोगों के साथ मारपीट की. लड़का ब्राह्मण समुदाय से था तो दूसरे पक्ष के लोग पिछड़े वर्ग से. मारपीट की इस घटना ने लड़के को इलाके का जाना-पहचाना नाम बना दिया. बीते 3 दिनों से जो एक मात्र नाम यूपी पुलिस की हिट लिस्ट में घूम रहा है उसकी कहानी यहीं से शुरू होती है. ये कुख्यात अपराधी विकास दुबे की कहानी है. उस समय हिंदी दैनिक अमर उजाला में रिपोर्टर रहे और वर्तमान में CNN लखनऊ के ब्यूरो चीफ प्रांशु मिश्रा बताते हैं,
ये राजनीति का वो दौर था जिसमें पिछड़ों की राजनीति तेजी से बढ़ रही थी. मंडल पॉलिटिक्स अपने पीक पर थी और ब्राह्मण अपने आप को थोड़ा आइसोलेट महसूस करने लगे थे. उसी समय एक दबंग ब्राह्मण लड़का उभरा तो ब्राह्मण के एक वर्ग को लगा कि हां कोई तो है जिससे लोग घबराएंगे.
विकास पर सबसे पहले नजर पड़ी पूर्व विधायक नेकचंद्र पांडे की. विकास मारपीट करता, छोटे-मोटे अपराध करता, रंगदारी वसूलने के लिए लोगों को धमकाता और पुलिस पकड़ कर थाने ले जाती, फिर छोड़ देती. धीरे-धीरे इसने 4-5 लोगों की अपनी गैंग बनाई. नाम रखा बुलेट गैंग. क्योंकि इसके सारे साथी बुलेट से ही चलते. दी लल्लनटॉप से बातचीत में एक ग्रामीण ने बताया,
इसकी उम्र 17-18 साल के ही लगभग रही होगी. अपने 4-5 दोस्तों के साथ मिलकर इसने सबसे पहले एक बारात लूटी थी. इसने अंधेरे में झाड़ियों में कई जगह जलती हुई सिगरेट खोंस दी थी. जिससे कि बस में बैठे बारातियों को लगे कि इसके और भी साथी हैं जो झाड़ियों में छिपे हैं. इस तरह पूरी बारात लूट ली इसने.
1990 में ही बिकरू गांव के झुन्नाबाबा का कत्ल हो गया. कहते हैं कि ये कत्ल विकास दुबे ने ही कराया था. झुन्नाबाबा की 18 बीघे की जमीन पर कब्जे के लिए. मामले में रिपोर्ट भी दर्ज हुई. लेकिन बाद में वापस ले ली गई. यहीं से विकास चौबेपुर विधानसभा से चुनाव लड़ने वाले हरिकिशन श्रीवास्तव का हाथ थाम लेता है. हरिकिशन के संरक्षण में उसने वसूली और जमीन पर कब्जे का काम और तेज कर दिया. प्रांशु मिश्र बताते हैं,
वो जो एरिया है कानपुर देहात का वहां ब्राह्मण भी हैं और बैकवर्ड भी हैं. ब्राह्मण चेहरे के तौर पर कई दलों के नेता इसे संरक्षण देते रहे. अलग-अलग दलों के अलग-अलग नेताओं ने इसे काफी समय तक यूज किया. वो जो दौर था उसमें क्या था कि लोग क्राइम में आते और काफी प्राउड भी फील करते थे. इनमें रंगबाजी होती थी कि पहचानो हमको हम माफिया हैं. उस समय में पूर्वांचल से लेकर पूरे यूपी में कई ऐसे लड़के निकले थे. जो आगे विधायक-सांसद बन गए. विकास दुबे ने राजनीति में एक्सपेरिमेन्ट तो किया लेकिन खुद पॉलिटिशियन नहीं बन पाया. अपना लोकल लेवल पर रंगबाजी करते हुए जमीनों पर कब्जा और वसूली का काम करता रहा.
संतोष शुक्ला हत्याकांड
1996 में हरिकिशन श्रीवास्तव बसपा से विधानसभा का चुनाव लड़े. सामने थे बीजेपी के संतोष शुक्ला. रिजल्ट आया तो हरिकिशन श्रीवास्तव 1200 वोटों से चुनाव जीत गए. चुनाव जीते तो विजय जुलूस निकला. और इसी विजय जुलूस के दौरान दोनों प्रत्याशियों के समर्थक आपस में भिड़ लिए. कहते हैं कि हरिकिशन के विजय जुलूस की कमान संभाल रहे विकास दुबे ने लल्लन बाजपेयी के भाई को बहुत बुरी तरह पीटा था. लल्लन बाजपेयी इस चुनाव में संतोष शुक्ला के साथ थे. लल्लन और विकास कभी एक साथ ही थे लेकिन बाद में अलग हो गए थे.
संतोष शुक्ला के भाई मनोज शुक्ला से हमने बात की. उन्होंने इस रंजिश की कुछ परतें उधेड़ीं. वो कहते हैं कि संतोष शुक्ला और विकास दुबे की सीधी लड़ाई नहीं थी. 1996 में संतोष शुक्ला जिलाध्यक्ष हुआ करते थे. तब लल्लन बाजपेयी को उन्होंने ही शिवली नगर पंचायत अध्यक्ष चुनाव का बीजेपी टिकट दिया था. चुनाव हुआ. लल्लन बाजपेयी चेयरमैन हो गए. लल्लन बाजपेयी नेता हुए तो उनकी शह पर इलाके में उगाही शुरू हो गई. इस उगाही को लेकर लल्लन बाजपेयी और विकास दुबे में विवाद शुरू हो गया. कई बार मारपीट हुई. विवाद बढ़ता चला गया.
मनोज बताते हैं,
12 अक्टूबर 2001 को विकास दुबे ने लल्लन बाजपेयी के यहां हमला कर दिया. लल्लन बाजपेयी थे बीजेपी के आदमी. लल्लन बाजपेयी ने उस समय के राज्यमंत्री संतोष शुक्ला को फोन किया कि इन लोगों ने हमें घेर लिया. 12-15 लोग हैं. कट्टे वगैरह के साथ. संतोष शुक्ला ने कहा कि हम आ रहे हैं. वो पहले शिवली थाने गए कि फोर्स लेकर जाएंगे. शिवली थाने पर विकास दुबे और उसके लोग आ गए. थाने के अंदर दोनों के बीच बहस हुई. बात बढ़ी और संतोष शुक्ला पर विकास दुबे ने गोली चला दी.
‘मुख्यमंत्री नाराज नहीं हो सकतीं’
थाने के अंदर हत्या हुई थी. उस समय सारे पुलिसवाले मौजूद थे. लेकिन विकास दुबे को गिरफ्तार नहीं किया गया. 2002 में उसने आत्मसमर्पण किया. जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. संतोष शुक्ला की हत्या के बाद बसपा ने उसे पार्टी से निष्कासित कर दिया था. हालांकि विकास इस निष्कासन को दिखावटी कदम बताता था. 2002 में जब वो आत्मसमर्पण करने गया तो उसके साथ बसपा के कई नेता मौजूद थे. विकास दुबे उस वक्त ये खुलेआम कहा करता था कि मुख्यमंत्री मुझसे कभी नाराज नहीं हो सकतीं. उसका ये बयान उस वक्त बसपा में उसके रुतबे को दिखाता था.
विकास दुबे का अपराधिक इतिहास
इस समय विकास दुबे पर 60 मुकदमे दर्ज हैं. 6 बार गुंडा एक्ट, 8 बार गैंगस्टर एक्ट 6 बार क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट और एक बार रासुका के तहत कार्रवाई की गई है. इसके बावजूद वो खुल्ला घुमता रहा. साल 2000 में ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या में विकास दुबे का नाम आया. इसके अलावा साल 2000 में रामबाबू यादव हत्या के तार भी विकास दुबे से जुड़े. 2004 में केबल व्यवसायी दिनेश दुबे की हत्या में भी विकास दुबे आरोपी है. 2018 में अपने ही चचेरे भाई अनुराग पर भी जानलेवा हमला कराने का आरोप विकास दुबे पर है. इस मामले में अनुराग की पत्नी ने विकास समेत चार लोगों को नामजद किया था.
लेकिन जिस मामले ने उसकी तरफ सबसे ज़्यादा सिर घुमाए, वो था राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या का मामला. थाने के अंदर हुए राज्यमंत्री संतोष शुक्ला हत्याकांड में पुलिस को एक भी गवाह नहीं मिला. संतोष शुक्ला के सरकारी गनर और ड्राइवर ने भी गवाही नहीं दी. अंतत: विकास दुबे बरी हो गया.
बिकरू के आसपास के गांवों में विकास दुबे का अच्छा खासा प्रभाव है. ये आस-पास के गांवों में ‘पंडित जी’ के नाम से फेमस है. लड़कियों की शादी में मदद और छोटे-मोटे विवाद भी सुलझाने का काम कर खुद को रॉबिनहुड की तरह पेश करता. विकास खुद प्रधान और जिला पंचायत सदस्य रह चुका है. वर्तमान में विकास की पत्नी ऋचा भी जिला पंचायत सदस्य हैं. बिकरू के पास के ही एक ग्रामीण ने दी लल्लनटॉप से बातचीत में बताया,
विकास को राजनैतिक संरक्षण मिलने की एक बड़ी वजह ये है कि उसके पास तगड़ा वोटबैंक था. बिकरू के आसपास के कम से कम 25 गांव ऐसे हैं जहां ये जिसको चाहता प्रधान बना देता. एकमुश्त वोट इसके नाम पर गिरता था. सरकार चाहे किसी की भी हो, इसी वोट बैंक के सहारे विकास हमेशा राजनीतिक संरक्षण पाता रहा. विकास की पत्नी जहां से जिला पंचायत सदस्य है वो इसके गांव से काफी दूर है. लेकिन इसके बावजूद ये वहां से जाकर जीत जाता है.
बिकरू गांव 80 फीसद खाली हो चुका है. अधिकतर घरों में ताला बंद है. जो खुले हैं उनमें भी या तो बुजुर्ग है या महिलाएं. 4 जुलाई को पुलिस ने विकास का पूरा घर ढहा दिया. सारा सामान तहस-नहस कर दिया. लेकिन कोई गांव वाला झांकने तक नहीं आया. जबकि ये वही गांव है जिसके नाम का पूरे इलाके में कभी एक दहशत हुआ करती थी. बिकरू के पड़ोसी गांव के एक दूसरे ग्रामीण बताते हैं,
पूरा गांव हमेशा इसके सपोर्ट में रहता है. इसकी वजह ये है कि बाहर इसने कितनी भी बदमाशी, गुंडागर्दी की हो लेकिन गांव में हमेशा लोगों की मदद की है. बिकरू के अलावा आसपास के गांवों के लोग भी विकास दुबे का नाम लोगों को धमकाने के लिए करते हैं. जैसे कभी किसी से कोई बात हो जाए, बहस हो जाए और कोई कह दे कि हम बिकरू के रहने वाले हैं तो सामने वाला गांव का नाम सुनकर बहस खत्म कर देगा. गांव का हर लड़का किसी न किसी तरह से विकास दुबे से जरूर जुड़ा हुआ है. यही वजह है कि बोलने वाले तो पूरे गांव को बदमाश बोलते हैं. ऐसा नहीं है कि बिकरू में पुलिस पहली बार आई थी पहले भी आई थी लेकिन गांव वालों का इतना तगड़ा सपोर्ट है कि कभी उसे पकड़ कर नहीं ले गई. पुलिस में भी उसकी तगड़ी सेटिंग थी. पहले क्या होता था कि बदमाशों की मुखबिरी पुलिस के पास आती थी लेकिन यहां पर क्या हुआ कि पुलिस की मुखबिरी बदमाशों के पास हो गई.
2-3 जुलाई की रात पुलिस के बिकरू गांव में आने के बारे में विकास को पूरी खबर थी. विकास के एक साथी दयाशंकर को पुलिस ने गिरफ्तार किया है. दयाशंकर ने कहा कि मुठभेड़ के दौरान विकास दुबे खुद बंदूक लेकर पुलिस पर फायरिंग कर रहा था. ये बंदूक दयाशंकर के नाम पर थी. हमले के लिए विकास ने 25 से 30 लोगों को बुलाया था, जिनके पास अवैध हथियार थे. दयाशंकर ने पुलिस की ओर से मुखबिरी होने के संकेत भी दिए. हालांकि उसने साफ-साफ किसी का नाम नहीं लिया. लेकिन कहा कि पुलिस दबिश से पहले विकास के पास एक फोन आया था. किसका आया, यह नहीं पता. लेकिन फोन थाने से किसी का आया होगा. फोन आने के बाद वह सक्रिय हुआ.
घर नहीं अभेद्य किला कहिए
बिकरू गांव की आबादी 5 हजार के लगभग है. विकास ने अपने घर को अभेद्य किला बना रखा था. घर में बंकर था, जिसमें वह हथियार छुपाकर रखता था. पुलिस ने विकास दुबे के घर से भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद किया गया है. मुठभेड़ के दौरान बदमाशों ने 200-300 फायर किए जिसके खोखे भी बरामद किए गए हैं. पुलिस जांच में सामने आया है कि बिकरू गांव में विकास दुबे ने अपने साथियों को इकट्ठा करके रात के खाने का इंतज़ाम किया था. पुलिस को जांच के दौरान विकास के घर से एक बड़े पतीले में क़रीब बीस लोगों के खाने भर के चावल और दाल के भरे हुए बर्तन मिले थे. इन बर्तनों में खाना बनकर तैयार था लेकिन किसी ने खाया नहीं था. विकास के घर के बाहर बनी एक कोठरी में खाना बनाने का इंतज़ाम किया गया था. इसमें उसके ड्राइवर और साथियों ने खाना पकाया था.
विकास दुबे की कहानी पुलिस, पॉलिटिक्स और अपराध के गठजोड़ की कहानी है. तीन दशक तक लगातार अपराध जगत में सक्रिय रहने के बावजूद उसे पुलिस और नेताओं का संरक्षण मिलता रहा. 60 मुकदमे होने के बावजूद वो खुला घुमता रहा. पकड़ा भी जाता तो बाहर आ जाता. यही वजह रही कि 2-3 जुलाई की रात तीन थानों की फोर्स पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाने में उसे एक बार भी डर नहीं लगा.