माइकेल कैलर, गेब्रियल डांसेट
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बच्चों के अश्लील और आपत्तिजनक फोटो लंबे समय से इंटरनेट पर डाले जा रहे हैं। ये तस्वीरें भयावह हैं। तीन से चार वर्ष की आयु के बच्चों से यौन दुर्व्यवहार और यातनाओं के फोटो पोस्ट किए जाते हैं। टेक्नोलॉजी कंपनियों ने पिछले वर्ष ऐसे चार करोड़ 50 लाख फोटो और वीडियो आने की जानकारी दी है। करीब दस वर्ष पहले एेसी तस्वीरों की संख्या दस लाख से कम थी। इसके बाद 2008 में टेक कंपनियां और अमेरिकी सरकार सक्रिय हुई। इस पर नियंत्रण के लिए संसद ने कानून पास किया था।
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न्यूयॉर्क टाइम्स की जांच-पड़ताल में पाया गया कि अंडरवर्ल्ड ने रोकथाम के लिए किए गए अपर्याप्त प्रयासों से फायदा उठाया है। कई टेक कंपनियां हेट स्पीच और आतंकवादी प्रोपेगंडा के समान बच्चों के यौन शोषण की तस्वीरों पर रोक लगाने में विफल रही हैं। कंपनियों ने जरूरत पड़ने पर अधिकारियों से भी पूरी तरह सहयोग नहीं किया है। अमेरिकी न्याय विभाग ने भी कार्रवाई के लिए किसी वरिष्ठ अधिकारी की नियुक्ति नहीं की है। जिस ग्रुप को ऐसे फोटो की निगरानी की जिम्मेदारी सौंपी गई है, उसके पास जरूरी साधन नहीं हैं। लापता और शोषित बच्चों के नेशनल सेंटर द्वारा प्रकाशित एक दस्तावेज में अश्लील इमेज की जानकारी देने वाले सिस्टम को ध्वस्त होने की कगार पर बताया गया है। यह समस्या ग्लोबल है। पिछले वर्ष पाए गए अधिकतर फोटो अन्य देशों के हैं।
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चाइल्ड पोर्नोग्राफी डिजिटल युग से पहले से चल रही है। पर स्मार्ट फोन कैमरों, सोशल मीडिया और क्लाउड स्टोरेज के कारण तस्वीरें तेजी से फैलती हैं। ऐसी इमेज ने इंटरनेट के सभी कोनों पर कब्जा कर रखा है। ये फेसबुक मैसेंजर, माइक्रोसॉफ्ट का बिंग सर्च एंजिन और स्टोरेज सर्विस ड्रॉपबॉक्स जैसे प्लेटफार्म पर भी हैं। फेसबुक ने मार्च में मैसेंजर को एनक्रिप्ट करने की घोषणा की है। पिछले वर्ष इस पर बाल यौन दुर्व्यवहार से जुड़े एक करोड़ 20 लाख मामले सामने आए थे।
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हर वर्ष बढ़ रहे मामले
1998 में बच्चों के यौन शोषण की तीन हजार से अधिक रिपोर्ट दर्ज की गई थीं। दस साल बाद यह संख्या एक लाख हो गई। 2014 में पहली बार दस लाख से अधिक मामले रिपोर्ट हुए। पिछले वर्ष एक करोड़ 84 लाख मामले सामने आए। इनमें साढ़े चार करोड़ इमेज और फोटो बच्चों से यौन दुर्व्यवहार की श्रेणी में आते हैं।