वे कौन कौन सी तकनीके हैं, जो केवल भारत के पास है?
आज के प्रगतिशील देश तकनीक के माध्यम से एक दूसरे से इतने बेहतर तरीके से जुड़े हुये है, की ऐसा बहुत कम देखने मे आता है की किसी देश ने कोई तकनीक विकसित की और वो सिर्फ उस देश तक ही सीमित रह जाये।
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लंबी अवधि के व्यापक आर्थिक विकास के लिए नई तकनीक को अपनाना आवश्यक है। इसीलिए कोई भी विकसित देश नहीं चाहेगा कि तकनीके सिर्फ उसी के पास रहें। वो ज्यादा से ज्यादा इसे दूसरे देशो में फैलाकर इससे लाभ लेने के चक्कर मे रहता है।
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ऐसा सिर्फ सैन्य ताकतो के मामलो मे ही होता है जब कोई देश अपने देश की सुरक्षा के लिए ऐसी तकनीकों का निर्माण करे, जो और किसी के पास ना हो। और अपने देश भारत मे तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई तकनीक विकसित हुई हो, और उसे हमने छुपा कर रखा हो। इसका कारण दुनियाँ मे अपना सिक्का जमाना या पैसा कमाना नहीं है, बल्कि भारतीयों मे नरमदिली का होना है।
पुरातन काल से ही भारतीय वैज्ञानिकों और अन्वेषणकर्ताओं ने अपने आविष्कारों, खोजो और नीतियों को मुफ्त मे पूरी दुनियाँ मे यूँ ही बाँटा है।
सारे देश के वैज्ञानिक कहाँ अपने द्वारा की गयी खोजो को पेटेंट कराकर अधिक से अधिक लाभ लेने के चक्कर मे रहते है, और कहाँ अपने देश के लोग किसी खोज को बिना पेटेंट कराये पूरी दुनिया की भलाई के लिए इन तकनीकों का श्रेय भी नहीं लेते है। ऐसे कई उदाहरण है, जब भारतीयो के आविष्कार बिना किसी लाभ के पूरी दुनिया के काम आए।
कुछ उदाहरण देता हूँ-
☞ आप सभी ने यूएसबी (usb) को तो देखा ही होगा। चार्जर, माऊस, कीबोर्ड से लेकर बड़े बड़े गैजेट्स मे इसकी कितनी उपयोगिता ही, ये शायद मुझे बताने की जरूरत नहीं है, लेकिन एक बात मुझे बताने की जरूरत पड़े कि, क्या आप जानते है कि इसका आविष्कार एक भारतीय-अमेरिकी कंप्यूटर आर्किटेक्ट अजय भट्ट ने किया था।
वे चाहते तो अपने इस काम को पेटेंट कराकर करोड़ो मे रुपये कमाते या फिर ये तकनीक सिर्फ भारतीय कंपनियो तक सीमित रखते, लेकिन उन्होने टीम वर्क का बहाना बनाकर इसे मुफ्त मे पूरी दुनिया को इस्तेमाल करने के लिए छोड़ दिया।
आप खुद ही सोचिए की करीब 10 मिलियन यूएसबी इस वक़्त पूरी दुनिया मे आपरेशनल है।
☞ दूसरी बात हम योग पर आते है। भारत योग कला की तकनीक का व्यवसायीकरण करके सिर्फ इसे भारत में ही सीमित रखता?
☞ तीसरी बात हम शल्य चिकित्सा पर आते है। क्या होता अगर विश्व के प्रथम सर्जन सुश्रुत ने दुनियाभर से आए डाक्टरों के साथ ये तकनीक साझा करने से मना कर दिया होता। भारत मे सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है, जिनहोने विश्व में पहली बार प्लास्टिक सर्जरी, राइनोप्लास्टिक सर्जरी और कैटेरेक्ट सर्जरी की थी, वो भी बिना किसी आधुनिक मशीनों के कई सौ सालो पहले। फिर यूरोपियन और बाकी जगहो के चिकित्सको ने उनके पास इस तरीके को सीखने के लिए आना शुरू कर दिया।
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सुश्रुत ने कभी भी किसी को निराश नहीं किया।
सोच कर ही देखिये की आज विश्व की मेडिकल साइन्स भारत से कितनी पीछे होती अगर इस तकनीक का सिर्फ भारत मे ही इस्तेमाल होता? आप बेहतर कल्पना कर सकते है।
तो आप ये बात तो असंभव ही समझिए की कोई तकनीक सिर्फ भारत मे ही रह जाये।
आप चाहे तो इस बात से मूल्यांकन कर सकते है कौन सी तकनीके सबसे पहले सिर्फ भारतीयो द्वारा विकसित की गयी थी। समय भी लगेगा और दिमाग भी खर्च होगा, तो चलिये शुरु से शुरू करते है और ऐसी ही कुछ खोजो के बारे मे विस्तार से जानते है जो सिर्फ भारत मे ही हुई है।
✦ ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos missile)
इस मिसाइल का निर्माण भारत मे हुआ है और फिलहाल इसका उपयोग सिर्फ भारत मे ही है।
ब्रह्मोस एक मध्यम दूरी की रैमजेट सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है जिसे पनडुब्बी, जहाजों, विमानों या जमीन से लॉन्च किया जा सकता है। यह दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसे डीआरडीओ (भारतीय सरकारी संस्था) ने रूस के साथ मिलकर बनाया है। इस मिसाइल मे उपयोग होने वाली तकनीक का इस्तेमाल इस वक़्त सिर्फ भारत की ही सेनाओ द्वारा हो रहा है।
ब्रह्मोस नाम दो नदियों, भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा नदी के नाम से बना है।ब्रह्मोस मिसाइल की अधिकतम गति लगभग 3,450 किमी प्रति घंटे या 2,148 मील प्रति घंटे है।
✦ लिविंग रूट ब्रिज (Living Root Bridge)
दुनिया भर में कई ऐसे पुल हैं जो इंसानों की बेहतरीन संरचनाओ मे से माने जाते हैं! लेकिन भारत के मेघालय में लिविंग रूट ब्रिज को कुदरत और इंसान की बेहतरीन जुगलबंदी का बेहतरीन नमूना माना जाता है। ये पुल ज़िंदा पेड़ की मोटी और उलझी हुई जड़ो से बनाए जाते है। वे रबर और अंजीर के पेड़ की जड़ों से हस्तनिर्मित हैं। जिस पेड़ से यह बनता है, जब तक वह स्वस्थ रहता है, पुल में जड़ें स्वाभाविक रूप से मोटी और मजबूत होती जाती हैं।
बताइये आपने कहीं सुनी है पूरी दुनिया मे ऐसी तकनीक जिससे हम पेड़ो की जड़ो को जहां चाहे मोड़ सकते है।
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इसे बनाने की तकनीक काफी पुरानी है और ये सिर्फ भारत के प्रशिक्षित खासी और जयंतिया जनजातियों द्वारा ही बनाए जाते है। पर्यावरण के मामले मे ये भारत की एक और उपलब्धि है जिस पर भारत गर्व कर सकता है, और इस बात पर भी, कि ऐसा सिर्फ भारत में होता है।
✦ भारतीय मार्स ओर्बिटर
आप में से अधिकतर को ये पता होगा की भारत मंगल पर ओर्बिटर भेजने वाला दुनिया का चौथा देश है। और अपने पहले ही प्रयास मे मंगल तक पहुँचने वाला दुनिया का एकमात्र देश है। ये ऐसी उपलब्धि है जिस पर पूरा भारत इसरो पर गर्व कर सकता है। तो आखिर कौन सी ऐसी खास तकनीक थी हमारे ओर्बिटर में ?
दरअसल भारत के पास इतना ताकतवर रॉकेट नहीं था, जो ओर्बिटर को सीधे ही मंगल की कक्षा मे पहुँचा दे लेकिन भारत ने ऐसी तकनीक अपनाइ कि मार्स मिशन का बजट हॉलीवुड की कई फिल्मों से भी सस्ता हो गया। उनमे से कुछ मुख्य है;
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ओर्बिटर को सीधे मार्स कि कक्षा मे पहुंचाने के बजाय विभिन्न ग्रहो कि गुरुत्वाकर्षण शक्ति का उपयोग ओर्बिटर को गति प्रदान करने के लिए किया गया। MOM के प्रोब ने पृथ्वी की कक्षा में लगभग एक महीने का समय बिताया, जहां 30 नवंबर 2013 को मंगल की कक्षा मे जाने के लिए आखिरी इंजेक्शन से पहले सात अपभू-उठाने वाले कक्षीय युद्धाभ्यासों को एक सीरीज मे लांच किया गया। मंगल ग्रह पर 298 दिनों के पारगमन के बाद, इसे 24 सितंबर 2014 को मंगल की कक्षा में स्थापित किया गया था।
ओर्बिटर को हल्का बनाने के लिए उसके कई फ्रेमों मे भारत मे निर्मित स्टील से भी हल्के संरचनाओं (एल्यूमिनियम और CFRP- विशेष प्रकार का प्लास्टिक फ़ाइबर) का निर्माण किया गया था। और ऐसा पहली बार सिर्फ भारत मे ही किया गया था।
इसे कहते है सही मायनों में आपदा में अवसर तलाशना।
ये सब आविष्कार तो ऐसे है जिनके बारे मे अधिकतर जानते है। लेकिन कुछ तकनीकों के बारे में अभी तक खुद कई भारतीयों को ही नहीं पता है। ऐसे सैकड़ो उदाहरण आप भारत के प्राचीन मंदिरों मे देख सकते है। मैं सबके बारे में लिखने बैठ जाऊ तो कई दिन लग जाएँगे।
विदेशी पुरातत्वविदों ने इन रचनाओं को कोरी सजावट का सामान ही बताया है। उनके अनुसार ये सब सिर्फ किसी धार्मिक अंधविश्वास पर ही बनाए गए थे। लेकिन हाल मे हुई कुछ खोजो के आधार पर ये पूरी तरह वैज्ञानिक है और भारत के सारे मंदिरो के एक भी मूर्ति बिना वजह नहीं है, और कोरे अंधविश्वास पर तो बिलकुल नहीं।
भारत के प्राचीन लेखो मे आग लगाकर इन्हे सिर्फ अध्यात्म से ही जोड़ा गया है, जो काफी दुखद है।
ये खोज दुनिया मे इतने प्रसिद्ध हुए ही नहीं, सिर्फ विश्व के कुछ कागजी रिकार्डों मे इनका नाम दर्ज़ कर हमें वैश्विक संस्थाओं द्वारा केवल लोलीपोप दिखाया गया है। गलती से भी ऐसे मंदिरों के बारे मे कुछ जानने के लिए विकिपीडिया जैसे साइटों पर आँख मूंदकर भरोसा मत कीजिएगा। इनके पास भी ऐसी कई भ्रामक जानकारियाँ है इन मंदिरों के लिए।
भारतीय सरकार और पुरातत्वविदों से कुछ उम्मीद ही करना बेकार है। मीडिया जैसे जागरूकता फैलाने वाले संस्थान तो बॉलीवुड मसाला, राजनीति की गरमागरम बहस और सांप्रदायिक मुद्दो से टीआरपी बनाने मे इतने व्यस्त है की वे भी इसे तभी दिखते है जब इनके पास न्यूज़ की कमी हो।
एक कारण यह भी हो सकता है की हमारे पास इन खोजो के बारे मे रिसर्च करने से भी बड़ी समस्याएँ है, जिससे ये मुद्दे कहीं कोने मे दब से जाते है। आप सोच भी नहीं सकते की यदि ऐसी अद्भुत तकनीके किसी और विकसित देश मे होती तो वो अब तक इनको कितने बड़े रिसर्च सेंटर और पर्यटन स्थल के रूप मे विकसित कर देता!
ऐसे ही कुछ मंदिरो और इनमे इस्तेमाल हुये खास तकनीकों के बारे में हम यहाँ जानेंगे जो विश्व मे और कहीं नहीं पाये जाते है, और इनको बनाने की तकनीक की खोज अभी बाकी है।
✦ पत्थरो मे संगीत 🎶
भारत में संगीत का इतिहास काफी पुराना रहा है। वाद्ययंत्रों में और संगीत में जो कला भारतीयों ने हासिल की है, वो बेजोड़ है। कुछ दक्षिण-भारतीय मंदिरों में तो ऐसे पत्थर के खंभो का निर्माण किया गया है जो संगीत के अलग अलग त्वरण वाली ध्वनियाँ उत्पन्न करते है।
आइये, आपको इसी विशेषता वाले कुछ मंदिरों की सैर कराता हूँ।
✧हम्पी
हम्पी भारत में एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थान है। यह कर्नाटक में स्थित है, जो भारत का एक दक्षिण-पश्चिमी प्रांत है। यह राज्य की राजधानी बेंगलुरु से लगभग 350 किमी उत्तर में स्थित है। हम्पी के खंडहर, जैसा कि आज भी जाना जाता है, इतिहास, वास्तुकला और धर्म का एक विशाल संग्रहालय है। यह 25 वर्ग किमी से अधिक के क्षेत्र में फैला हुआ है और यहाँ मंदिरों, महलों, बाजार की सड़कों, किलेबंदी, जलीय संरचनाओं और प्राचीन स्मारकों की बहुतायत है।
हम्पी में विजया विट्ठल मंदिर में 56 संगीत स्तंभ हैं जिन्हें सारेगामा स्तंभ भी कहा जाता है। सा, रे, गा, मा, सात संगीत नोटों में से चार हैं। अंगूठे से टकराने पर ये स्तंभ संगीतमय स्वर उत्पन्न करते हैं। ऐसा लगता है जैसे घंटी बज रही हो। इन स्तंभों के भूवैज्ञानिक विश्लेषण से पता चलता है कि चट्टानें न केवल धात्विक अयस्क की उपस्थिति के कारण बल्कि बड़ी मात्रा में सिलिका के कारण भी इस तरह गुंजयमान हैं।
✧ श्री विजया विट्ठल मंदिर
संगीत के स्तंभों को हिंदू कला की अनूठी स्थापत्य कलाओं में से एक माना जाता है। मूर्तिकारों ने अपने मूर्तिकला के साथ-साथ संगीत कौशल का भी उनमें निवेश किया है। श्री विजया विट्ठल मंदिर १५वीं शताब्दी में बनाया गया था जिसमें ५६ संगीत स्तंभ हैं।
✧ नेल्लईअप्पर मंदिर
तिरुनेलवेली के नेल्लईअप्पर मंदिर में, 4 संगीत स्तंभ हैं। उनके पास एक केंद्रीय स्तंभ है जिसके चारों ओर अलग-अलग चौड़ाई के 48 छोटे बेलनाकार स्तंभ हैं। जब उन्हें किसी चीज़ से टैप किया जाता है तो वे अलग-अलग आवाजें देते हैं।
आप लोगो में से कई लोग अलग अलग देशों मे जा चुके होंगे और वहाँ की कई प्रसिद्ध चीज़ों को भी देखा होगा, लेकिन ऐसे विशाल पत्थर के खंभो मे कभी संगीत के सुरों का समागम देखा है? ये तकनीक यकीनन सिर्फ भारतीयो के पास ही थी।
यहीं नहीं, कई मंदिरो मे पत्थरों की चैन भी बनाई गयी है, जो आज की तकनीक के हिसाब से बिना पत्थरो के पिघलाए नामुमकिन है। कई मंदिरों के गहन विश्लेषण और स्थानीय लेखो को पढ़ने के बाद ये साबित हो चुका है कि सिर्फ भारतीयों के पास ही इस तरह के प्त्थरो को पिघलाने कि तकनीक थी।
इतिहास मे और गहराई तक जाएंगे तो और भी कई ऐसे आविष्कार और है जिनकी उत्पत्ति और उत्पादन यदि भारत तक ही सीमित होती तो निश्चय ही दुनिया थोड़ी कम विकसित होती।
आशा करता हूँ की आप सभी को ये प्रयास पसंद आया होगा। लेख लिखने में समय तो लगा पर कुछ शिक्षाप्रद लिख कर अच्छा लग रहा है। इतने लंबे लेख को पढ़ने के लिए आप सभी का धन्यवाद!
माना, की अपने भारत मे समस्याए थोड़ी ज्यादा है, लेकिन आश्चर्य और गर्व करने लायक बातें तो उससे भी ज्यादा है। जैसा भी है, हमारा देश हमें बहुत प्यारा है…
जय हिन्द, जय भारत !
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