MIM हैदराबाद स्टेट को भारत में मिलाए जाने के खिलाफ थी. रज़ाकारों ने तब कासिम रिजवी (Qasim Razvi) के नेतृत्व में बड़े स्तर पर हिंसा की थी.
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असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी और विवादों का गहरा नाता है. अक्सर AIMIM के नेताओं के बयानों पर सियासत गर्मा जाती है. कई बार खुद असदुद्दीन ओवैसी के बयानों पर बवाल हो चुका है. अब
पार्टी के के राष्ट्रीय प्रवक्ता और महाराष्ट्र के भयखला से विधायक वारिस पठान (Waris Pathan) ने एक भड़काऊ बयान देकर देश की सियासत को गर्मा दिया है.
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कर्नाटक के गुलबर्गा में वारिस पठान (Waris Pathan) ने एक रैली में भाषण दिया. सीएए (CAA) और एनआरसी (NRC) पर चल रहे विरोध प्रदर्शन पर वारिस पठान ने कहा, ‘100 करोड़ (हिंदुओं) पर 15 करोड़ (मुस्लिम) भारी पड़ेंगे.’ उन्होंने कहा कि अगर आजादी दी नहीं जाती तो छीननी पड़ेगी.’ ऐसा नहीं है कि पिछले कुछ सालों में ही पार्टी से विवादों का नाता रहा है. AIMIM पार्टी का इतिहास भी विवादित रहा है. भारत की आजादी के समय पार्टी को लेकर काफी विवाद हुआ था. आइए जानते हैं पूरी कहानी.कोहली के हुये इतने फालोवार्स
क्या है AIMIM इतिहास कुछ हैरान कर देने वाले तथ्य क्या हैं?
AIMIM की स्थापना भारत की आजादी के पहले ही हो गई थी. तब इसका नाम सिर्फ मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन ही था. पार्टी के नाम में ऑल इंडिया लगने की कहानी दिलचस्प है लेकिन वो अभी बाद में.
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MIM की स्थापना 1927 में हैदराबाद के नवाब उस्मान अली खान की सलाह पर हुई थी और ये एक निजाम समर्थक पार्टी थी. तब इसका नाम मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन था. 1938 में पार्टी का अध्यक्ष बहादुर यार जंग को बनाया गया. इसे तब हैदराबाद और उसके आस-पास के इलाकों में लोकप्रियता मिलने लगी. 1944 में बहादुर यार जंग की मौत के बाद कासिम रिजवी इसके अध्यक्ष बने. इलेक्ट्रिक कारों के बारे में अभी भी बहुत कुछ गलत सोचते हैं लोग, जो बिल्कुल सही नहीं
कौन थे कासिम रिजवी
कासिम रिजवी ही वो नेता थे जिन्होंने रज़ाकारों की फौज बनाई थी जो अधिग्रहण के समय हैदराबाद के निजाम की तरफ से भारत सरकार के सामने खड़ी थी. रिजवी और MIM चाहते थे कि निजाम हैदराबाद के इलाके को दक्षिणी पाकिस्तान के रूप में मान्यता मिले. यानी वो भारत में मिलने के खिलाफ थे. रज़ाकारों की इस फौज ने उस वक्त हैदराबाद में बहुत उत्पात मचाया था.
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जब हो गया हैदराबाद का अधिग्रहण
जब निजाम हैदराबाद की तरफ से भारत में मिलने के प्रस्ताव को नकार दिया गया तब मजबूरन भारत सरकार को सख्त कदम उठाने पड़े. हैदराबाद को भारत में मिलाने के ऑपरेशन पोलो के तहत मिलिट्री एक्शन लिया गया. हैदराबाद के निजाम को झुकना पड़ा लेकिन इसकी वजह से इलाके में बड़े सांप्रदायिक दंगे हुए. माना जाता है उस समय हिंसा में तीस से चालीस हजार लोगों की मौत हुई थी. इन सब के पीछे MIM का बड़ा हाथ था.
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जब पार्टी हो गई बैन, कासिम रिजवी को भेजा जेल
1948 में MIM को भारत सरकार ने बैन कर दिया और कासिम रिजवी को जेल के भीतर डाल दिया गया. कासिम रिजवी को 9 सालों तक जेल में रखा गया. 1957 में जवाहर लाल नेहरू सरकार ने कासिम रिजवी को इसी शर्त पर रिहा किया कि वो पाकिस्तान चले जाएंगे. कासिम रिजवी अपने पाकिस्तानी सूत्रों के जरिए वहां से शरण हासिल कर चुके थे.
कासिम की रिहाई और MIM के नाम में लगा ‘ऑल इंडिया’
रिहाई के बाद कासिम रिजवी ने पहला काम ये किया कि उसने पार्टी की सारी ताकत अब्दुल वाहिद ओवैसी के हाथों में सौंप दी. अब्दुल वाहिद ओवैसी हैदराबाद में वकील थे और उन्हें एमआईएम का नामकरण ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन कर दिया. इसके बाद पार्टी की कमान उनके हाथ में ही आ गई.
अब्दुल वाहिद ओवैसी के बाद उनके बेटे सलाहुद्दीन ओवैसी और फिर उनके बेटे असदुद्दीन ओवैसी के हाथों में पार्टी कमान रही. पहले सलाहुद्दीन और फिर बाद में असदुद्दीन बीते कई लोकसभा चुनाव में हैदराबाद सीट से सांसद चुनकर संसद पहुंचते रहे हैं.
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